________________ ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार] 181 जो तारा रूप देव चन्द्र और सूर्यों के ऊपर अवस्थित हैं, वे धुति आदि की अपेक्षा हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? हां, गौतम ! कोई हीन भी हैं और कोई बराबर भी हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि कोई तारादेव हीन भी हैं और कोई तारादेव बराबर भी हैं ? गोतम ! जैसे-जैसे उन तारा रूप देवों के पूर्वभव में किये हुए नियम और ब्रह्मचर्यादि में उत्कृष्टता या अनुत्कृष्टता होती है, उसी अनुपात में उनमें अणुत्व या तुल्यत्व होता है। इसलिए गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि चन्द्र-सूर्यों के नीचे, समश्रेणी में या ऊपर जो तारा रूप देव हैं वे हीन भी हैं और बराबर भी हैं। प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में (88) अठ्यासी ग्रह, अट्ठावीस (28) नक्षत्र होते हैं और ताराओं की संख्या छियासठ हजार नौ सौ पचहत्तर (66975) कोडाकोडी होती है। 192. जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लाप्रो चरमंताओ केवइयं अबाहाए जोइसं चारं चरइ ? / गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहि जोयणसएहि अबाहाए जोइसं चारं चरइ; एवं दक्खिणिल्लाओ पच्चथिमिल्लानो उत्तरिल्लाओ एक्कारसहिं एकवीसेहि जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ। लोगताओ णं भंते ! केवइयं अबाहाए जोइसे पण्णते ? गोयमा ! एक्कारसहिं एक्कारेहि जोयणसएहि अबाहाए जोइसे पण्णते / इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जानो भूमिभागानो केवइयं अबाहाए सम्वहेटिल्ले ताराहवे चारं चरइ ? केवइयं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरइ? केवइयं प्रबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ ? केवइयं प्रबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ ? गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पभापुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तहिं णउएहि जोयणसएहिं अबाहाए जोडसं सव्वहेदिल्ले तारारूबेचारं चरह / अहि जोयणसर्ण हाए सूरविमाणे चारं चरइ / अहि असीएहि जोयणसएहिं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ / नहिं जोयणसएहि प्रबाहाए सव्वउरिल्ले ताराख्ये चारं चरइ। सबहेदिमिल्लाओ णं भंते ! तारारुवानो केवइयं अबाहाए सूरबिमाणे चार चरइ ? केवइयं चंदविमाणे चारं चरइ ? केवइयं अबाहाए सव्वउवरिल्ले ताराहवे चारं चरइ ? गोयमा ! सव्वहेट्ठिल्लाओ णं दसहि जोय!ह सूरविमाणे चारं चरइ / णउइए जोयणेहि अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ / दसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्योवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ / सूरविमाणाओ भंते ! केवइयं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ ? केवइयं सव्वउवरिल्ले ताराहवे चारं चरइ ? For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org