________________ देवशक्ति सम्बन्धी प्रश्नोत्तर] [79 गोयमा! पोग्गले खितेसमाणे पुष्वामेव सिग्घगई भवित्ता तो पच्छा मंदगई भवइ, देवे गं महिड्डिए जाय महाणुभागे पुवंपि पच्छावि सिग्धे सिग्धगई (तुरिए तुरियगई) चेव, से तेणोणं गोयमा ! एवं वुच्चइजाव अणुपरियत्ताणं गेण्हित्तए। __ देवे णं भंते ! महिटिए बाहिरए पोग्गले अपरियाइता पुण्यामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गंठित्तए ? नो इणठे समझें / __देवे णं भंते ! महिडिए बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पुन्यामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गंठित्ता? नो इणठे समढे / देवे णं भंते ! महिडिए जाव महाणभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पुन्वामेव बालं अछेत्ता अभेत्ता पभू गंठित्तए ? हंता पभू। तं चेव णं गठि छउमत्थे ण जाणइ, ण पासइ, एवं सुहुमं च णं गंठिया। देवे णं भंते ! महिड्डिए पुवामेव बालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा हस्सीकरित्तए वा? नो इणो समठे / एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता, अभेत्ता सेसं तदेव / तं चेव सिद्धं छउमत्थे ण जाणइ, ण पासइ / एवं सुहमं च णं दोहोकरेज्ज वा हस्सीकरेज्ज वा। 190. भगवन् ! कोई महद्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव (अपने गमन से) पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो वह ऐसा करने में समर्थ है ? हां, गौतम ! वह ऐसा करने में समर्थ है / भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह वैसा करने में समर्थ है ? गौतम ! फेंकी गई वस्तु पहले शीघ्रगति वाली होती है और बाद में उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि उस महद्धिक और महाप्रभावशाली देव की गति पहले भी शीघ्र होती है और बाद में भी शीघ्र होती है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि वह देव उस वस्तु को पकड़ने में समर्थ है। भगवन् ! कोई महद्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना और किसी बालक को पहले छेदे-भेदे बिना उसके शरीर को सांधने में समर्थ है क्या ? नहीं, गौतम ! ऐसा नहीं हो सकता ? भगवन् ! कोई महद्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके परन्तु बालक के शरीर को पहले छेदे-भेदे बिना उसे सांधने में समर्थ है क्या ? नहीं गौतम ! वह समर्थ नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org