________________ इन्द्रिय पुद्गल परिणाम] [77 गोयमा ! जावइया अड्डाइज्जाणं सागरोवमाणं उद्धारसमया एवइया दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पण्णत्ता दीवसमुद्दा णं भंते ! कि पुढविपरिणामा आउपरिणामा जीवपरिणामा पोग्गलपरिणामा ? गोयमा ! पुढवोपरिणामावि, आउपरिणामावि, जीवपरिणामावि, पोग्गलपरिणामावि / दोवसमुद्देसु णं भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूया, सव्वजोवा सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववण्णधुव्वा ? हंता गोयमा ! असइ अदुवा प्रणतखुत्तो। इति दीवसमुद्दा समत्ता। 188. भंते ! नामों की अपेक्षा द्वीप और समुद्र कितने नाम वाले हैं ? गौतम ! लोक में जितने शुभ नाम हैं, शुभ वर्ण हैं यावत् शुभ स्पर्श हैं, उतने हो नामों वाले द्वीप और समुद्र हैं। भंते ! उद्धारसमयों की अपेक्षा से द्वीप-समुद्र कितने हैं ? गौतम ! अढाई सागरोपम के जितने उद्धारसमय हैं, उतने द्वीप और सागर हैं। भगवन् ! द्वीप-समुद्र पृथ्वी के परिणाम हैं, अप के परिणाम हैं, जीव के परिणाम हैं तथा पुद्गल के परिणाम हैं ? ___ गौतम ! द्वीप-समुद्र पृथ्वीपरिणाम भी हैं, जलपरिणाम भी हैं, जीवपरिणाम भी हैं और पुद्गलपरिणाम भी हैं। भगवन् ! इन द्वीप-समुद्रों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्व पृथ्वीकाय यावत् त्रसकाय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं क्या ? गोतम ! हां, कईबार अथवा अनन्तबार उत्पन्न हो चुके हैं। इस तरह द्वीप-समुद्र की वक्तव्यता पूर्ण हुई। इन्द्रिय पुद्गल परिणाम 189. कइविहे गं भंते ! इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियविसए जाव - फासिदियविसए। सोइंदियविसए णं भंते ! पोग्गलपरिणामे कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुन्भिसहपरिणामे य दुब्भिसद्दपरिणामे य। एवं चक्खिदियविसयादिएहिवि सुरुवपरिणामे य दुरूवपरिणामे य / एवं सुरभिगंधपरिणामे य दुरभिगंधपरिणामे य। एवं सुरसपरिणामे य दुरसपरिणामे य / एवं सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे य। से नणं भंते ! उच्चावएसु सहपरिणामेसु उच्चावएसु रुवपरिणामेसु एवं गंधपरिणामेसु रसपरिणामेसु फासपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा ! उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org