Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 594
________________ ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार] [83 भगवन् ! चन्द्रविमान से कितनी दूरी पर सबसे उपर का तारा गति करता है ? गौतम ! चन्द्र विमान से बीस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है। इस प्रकार सब मिलाकर एक सौ दस योजन के बाहल्य (मोटाई) में तिर्यदिशा में असंख्यात योजन पर्यन्त ज्योतिष्कचक्र कहा गया है। भगवन ! जम्बूद्वीप में कौन-सा नक्षत्र सब नक्षत्रों के भीतर, बाहर मण्डलगति से तथा ऊपर, नीचे विचरण करता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में अभिजित् नक्षत्र सबसे भीतर रहकर मण्डलगति से परिभ्रमण करता है। मूल नक्षत्र सब नक्षत्रों से बाहर रहकर मण्डलगति से परिभ्रमण करता है / स्वाति नक्षत्र सब नक्षत्रों से ऊपर रहकर चलता है और भरणी नक्षत्र सबसे नीचे मण्डलगति से विचरण करता है।' 193. चंदविमाणे णं भंते ! किसंठिए पण्णते ? गोयमा! अद्धकविटुगसंठाणसंठिए सटवफालियामए अन्भुग्गयमूसियपहसिए वण्णओ / एवं सूरविमाणेवि गहविमाणेवि नक्खत्तविमाणेवि ताराविमाणेवि अद्धकविट्ठसंठाणसंठिए। चंदविमाणे णं भंते ! केवइयं प्रायाम-विक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं ? केवइयं बाहरूलेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छप्पन्ने एकसट्ठिभागे जोयणस्स आयामविक्ख भेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अट्ठावीसं एगसट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णते / सूरविमाणस्स सच्चेव पुच्छा? गोयमा ! अडयालीसं एकसट्ठिभागे जोयणस्स आयामविक्ख भेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एकसट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते / एवं गहविमाणेवि अद्धजोयणं प्रायामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं कोसं बाहल्लेणं पण्णत्ते। ___ नक्खत्तविमाणे णं कोसं पायामविक्खभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं अद्धकोसं बाहल्लेणं पण्णत्ते। ताराविमाने अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं पंचधणुसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ते। 193. भगवन् ! चन्द्रमा का विमान किस आकार का है ? गौतम ! चन्द्रविमान अर्धकबीठ के आकार का है / वह चन्द्रविमान सर्वात्मना स्फटिकमय है, इसकी कान्ति सब दिशा-विदिशा में फैलती है, जिससे यह श्वेत, प्रभासित है (मानो अन्य का उपहास कर रहा हो) इत्यादि विशेषणों का वर्णन करना चाहिए। इसी प्रकार सूर्यविमान भी, ग्रह विमान भी और ताराविमान भी अर्धकबीठ प्राकार के हैं। सव्वभितराऽभीई, मूलो पुण सव्व बाहिरो होई। सव्वोपरि तु साई भरणी पुण सव्व हेट्ठिलिया // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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