________________ ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार] [87 वालगंडाणं समखुरवालधाणोणं समलिहियतिक्खग्गसिंगाणं तणुसुहमसुजायणिद्धलोमच्छविधराणं उचियमंसलविसालपडिपुण्णखुद्दपमुहपुडराणं (खंधपएसे सुंदराणं) वेरुलियभिसंतकडक्खसुनिरिक्खणाणं जुत्तप्यमाणप्पहाणलक्खणपसत्थरमणिज्जगग्गरगलसोभियाणं घग्घरगसुबद्धकंठपरिमंडियाणं नानामणिकणगरयणघंटवेयच्छगसुकयरइयमालियाणं वरघंटागलगलियसोभंतसस्सिरीयाणं पउमुष्पलसगलसुरभिमालाविभूसियाणं वइरख राणं विविहख राणं फलियामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं महया गंभीरगज्जियरवेणं महुरेणं मणहरेण य पूरता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ वसभरूवधारीणं देवाणं पच्चथिमिल्लं बाहं परिवहति। 194. (इ) उस चन्द्रविमान को पश्चिमदिशा की ओर से चार हजार बैलरूपधारी देव उठाते हैं / उन बैलों का वर्णन इस प्रकार है __वे श्वेत हैं, सुन्दर लगते हैं, उनकी कांति अच्छी है, उनके ककुद (स्कंध पर उठा हुआ भाग) कुछ कुछ कुटिल हैं, ललित (विलासयुक्त) और पुष्ट हैं तथा दोलायमान हैं, उनके दोनों पार्श्वभाग सम्यग् नीचे की ओर झुके हुए हैं, सुजात हैं, श्रेष्ठ हैं, प्रमाणोपेत हैं, परिमित मात्रा में ही मोटे होने से सुहावने लगने वाले हैं, मछली और पक्षी के समान पतली कुक्षि वाले हैं, इनके नेत्र प्रशस्त, स्निग्ध, शहद की गोली के समान चमकते पोले वर्ण के हैं, इनकी जंधाएं विशाल, मोटी और मांसल हैं, इनके स्कंध विपुल और परिपूर्ण हैं, इनके कपोल गोल और विपुल हैं, इनके ओष्ठ धन के समान निचित (मांसयुक्त) और जबड़ों से अच्छी तरह संबद्ध हैं, लक्षणोपेत उन्नत एवं अल्प झुके हुए हैं / वे चंक्रमित (बांकी) ललित (विलासयुक्त) पुलित (उछलती हुई) और चक्रवाल की तरह चपल गति से गर्वित हैं, मोटी स्थूल वर्तित (गोल) और सुसंस्थित उनकी कटि है / उनके दोनों कपोलों के बाल ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह लटकते हुए हैं, लक्षण और प्रमाणयुक्त, प्रशस्त और रमणीय हैं / उनके खुर और पूछ एक समान हैं, उनके सींग एक समान पतले और तीक्ष्ण अग्रभाग वाले हैं। उनकी रोमराशि पतली सूक्ष्म सुन्दर और स्निग्ध है। इनके स्कंधप्रदेश उपचित परिपुष्ट मांसल और विशाल होने से सुन्दर हैं, इनको चितवन वैडूर्यमणि जैसे चमकीले कटाक्षों से युक्त अतएव प्रशस्त और रमणीय गर्गर नामक प्राभूषणों से शोभित हैं, घग्घर नामक आभूषण से उनका कंठ परिमंडित है, अनेक मणियों स्वर्ण और रत्नों से निर्मित छोटी-छोटी घंटियों की मालाएं उनके उर पर तिरछे रूप में पहनायी गई हैं। उनके गले में श्रेष्ठ घंटियों की मालाएं पहनायी गई हैं। उनसे निकलने वाली कांति से उनको शोभा में वृद्धि हो रही है / ये पद्मकमल की परिपूर्ण सुगंधियुक्त मालाओं से सुगन्धित हैं / इनके खुर वज्र जैसे हैं, इनके खुर विविध प्रकार के हैं अर्थात् विविध विशिष्टता वाले हैं। उनके दांत स्फटिक रत्नमय हैं, तपनीय स्वर्ण जैसी उनकी जिह्वा है, तपनीय स्वर्णसम उनके तालु हैं, तपनीय स्वर्ण के जोतों से वे जुते हुए हैं। वे इच्छानुसार चलने वाले हैं, प्रीतिपूर्वक चलनेवाले हैं, मन को लुभानेवाले हैं, मनोहर और मनोरम हैं, उनकी गति अपरिमित है, अपरिमित बल-वीर्य-पुरुषकारपराक्रम वाले हैं। वे जोरदार गंभीर गर्जना के मधुर एवं मनोहर स्वर से आकाश को गुजाते हुए और दिशाओं को शोभित करते हुए गति करते हैं। (इस प्रकार चार हजार वृषभरूपधारी देव चन्द्रविमान को पश्चिम दिशा से उठाते हैं।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org