________________ 78] [जीवाजीवाभिगमसूत्र से नणं भंते ! सुभिसद्दा पोग्गला दुग्भिसहत्ताए परिणमंति, दुन्भिसहा पोग्गला सुभिसद्दत्ताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! सुम्भिसद्दा पोग्गला दुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुभिसद्दा पोग्गला सुभिसद्दत्ताए परिणमंति। से नणं भंते ! सुरूवा पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति? हंता गोयमा! एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुरिभगंधत्ताए परिणमंति, दुनिभगंधा पोग्गला सुग्भिगंधत्ताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! एवं सुफासा दुफासत्ताए ? सुरसा दुरसत्ताए ? हंता गोयमा ! 189. भगवन् ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम पांच प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का विषय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय / भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? / गौतम ! दो प्रकार का है-- शुभ शब्दपरिणाम और अशुभ शब्दपरिणाम / इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय आदि के विषयभूत पुद्गलपरिणाम भी दो-दो प्रकार के हैं-यथा सुरूपपरिणाम और कुरूपपरिणाम, सुरभिगंधपरिणाम और दुरभिगंधपरिणाम, सुरसपरिणाम एवं दुरसपरिणाम और सुस्पर्शपरिणाम एवं दुःस्पर्शपरिणाम / / भगवन् ! उत्तम अधम शब्दपरिणामों में, उत्तम-अधम रूपपरिणामों में, इसी तरह गंधपरिणामों में. रसपरिणामों में और स्पर्शपरिणामों में परिणत होते हुए पुदगल परिणत होते हैं- बदलते हैं—ऐसा कहा जा सकता है क्या ? (अवस्था के बदलने से वस्तु का बदलना कहा जा सकता है क्या?) हां, गौतम ! उत्तम-अधम रूप में बदलने वाले शब्दादि परिणामों के कारण पुद्गलों का बदलना कहा जा सकता है / (पर्यायों के बदलने पर द्रव्य का बदलना कहा जा सकता है।) भगवन् ! क्या उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में बदलते हैं ? अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं क्या? गौतम ! उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में और अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं। भगवन् ! क्या शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप के पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं ? हां, गौतम ! बदलते हैं। इसी प्रकार सुरभिगंध के पुद्गल दुरभिगंध के रूप में और दुरभिगंध के पुद्गल सुरभिगंध के रूप में बदलते हैं। इसी प्रकार शुभस्पर्श के पुद्गल अशुभस्पर्श के रूप में और अशुभस्पर्श वाले शुभस्पर्श के रूप में तथा इसी तरह शुभरस के पुद्गल अशुभरस के रूप में और अशुभरस के पुद्गल शुभरस में परिणत हो सकते हैं। देवशक्ति सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 190. देवे णं भंते ! महिडिए जाव महाणुभागे पुवामेव पोग्गलं खवित्ता पभू तमेव अणुपरिवट्टित्ताणं गिहित्तए ? हंता प्रभू ! से केणछैणं एवं वुच्चइ देवे णं भंते ! महिडिए जाव गिहित्तए? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org