________________ 76]] [ जीवाजीवाभिगमसूत्र 187. कइ णं भंते ! समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णता ? गोयमा ! तो समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता, तं जहा--लवणे, कालोए, सयंभूरमणे। अवसेसा समुद्दा अप्पमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता समणाउसो ! लवणे णं भंते ! समुद्दे कइमच्छजाइकुलजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्त मच्छजाइकुलकोडीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता। कालोए णं भंते ! समुद्दे कइ मच्छजाइ पण्णता? गोयमा! नवमच्छकुलकोडीजोणोपमुहसयसहस्सा पण्णता / सयंभूरमणे णं भंते ! समुद्दे .. कइमच्छजाइ०? गोयमा ! अखतेरसमच्छजाइकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता / लवणे णं भंते ! समुद्दे मच्छाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पंचजोयणसयाई / एवं कालोए यणसयाई / संयंभूरमणे जहन्नणं अंगुलस्स असंखेज्जभार्ग उक्कोसेर्ण दस जोयणसयाई। 187. भगवन् ! कितने समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं ? गौतम ! तीन समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं, उनके नाम हैं-लवण, कालोद और स्वयंभूरमण समुद्र / आयुष्मन् श्रमण ! शेष सब समुद्र अल्प मत्स्य-कच्छपों वाले कहे गये हैं। भगवन् ! कालोदसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोडियों की योनियां कही गई हैं ? गौतम ! नव लाख मत्स्य-जातिकुलकोडी योनियां कही हैं। भगवन् ! स्वयंभूरमणसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोडियों की योनियां हैं ? गौतम ! साढे बारह लाख मत्स्य-जातिकुलकोडी योनियां हैं। भगवन् ! लवणसमुद्र में मत्स्यों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य से अंगुल का असंख्यात भाग और उत्कृष्ट पांच सौ योजन की उनकी अवगाहना है। इसी तरह कालोदसमुद्र में (जघन्य अंगुल का असंख्यात भाग) उत्कृष्ट सात सौ योजन की अवगाहना है / स्वयंभूरमणसमुद्र में मत्स्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है। 188. केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णता? गोयमा! जावइया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा जाव सुभा फासा, एबइया दोवसमुद्दा णामधेज्जेहिं पण्णत्ता। केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पण्णत्ता ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org