________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र वरुणोदस्स गं भंते ? गोयमा ! से जहाणामए पत्तासबेइ वा, चोयासवेइ वा, खजरसारेइ वा, सुपक्कखोयरसेइ वा, मेरएइ वा, काविसायणेइ वा, चंदप्पभाइ वा, मणसिलाइ वा, वरसोधूई वा, वरवारुणीइ वा, अट्टपिटपरिणिट्ठियाइ वा, जंबूफलकालिया वरप्पसण्णा उक्कोसमदपत्ता ईसि उद्वावलंबिणी, ईसितंबच्छिकरणो, ईसियोच्छेयकरणी, प्रासला मासला पेसला वण्णेणं उववेया जाव णो इणठे समझें, वरुणोदए इत्तो इठ्ठतरे व अस्साएणं पण्णत्ते। खोरोदस्स णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए अस्साएणं पण्णते ? गोयमा ! से जहाणामए चाउरंतचक्कट्टिस्स चाउरक्के गोखीरे ' पज्जत्तमंदग्गिसुकडिए पाउत्तरखण्डमच्छंडिओववेए वणेणं उबवेए जाव फासेणं उववेए, भवे एयारूवे सिया ? णो इणठे समठे, गोयमा ! खोरोयस्स० एत्तो इट्टयरे जाव अस्साएणं पण्णत्ते / . घयोदस्स णं से जहाणामए सारइयस्स गोघयवरस्स मंडे सल्लइकण्णियारपुष्फवण्णाभे सुकड्डियउदारसज्सवीसंदिए वण्णणं उववेए जाव फासेण य उववेए--भवे एयारूवे? जो इणठे समठे, एत्तो इट्ठयरो०। ___ खोदोदस्स से जहाणामए उच्छृण जच्चपुडयाण हरियालपिडिएणं भेरुडप्पणाण वा कालपेराणं तिभागनिव्वडियवाडगाणं बलवगणरजतपरिगालियसित्ताणं जे य रसे होज्जा। वत्थपरिपूए चाउज्जतग. सुवासिए अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उववेए जाव भवे एयारूवे सिया ? जो इणठे समठे, एत्तो इट्टयरे० / एवं सेसगाणवि समुद्दाणं भेदो जाव सयंभूरमणस्स गरि अच्छे जच्चे पत्थे जहा पुक्खरोदस्स। कह णं भंते ! :समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णता, तं जहा-लवणोदे, वरुणोदे, खोरोदे, घओदए / कइ गं भंते ! समुद्दा पगईए उदगरसेणं पण्णता? गोयमा ! तओ समुद्दा पगईए उदगरसेणं पण्णत्ता, तं जहा-कालोए, पुक्खरोए, सयंभूरमणे / अवसेसा समुद्दा उस्सण्णं खोयरसा पण्णत्ता समणाउसो! 186. (आ) भगवन् लवणसमुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ? गौतम ! लवणसमुद्र का पानी मलिन, रजवाला, शैवालरहित चिरसंचित जल जैसा, खारा, कडुया अतएव बहुसंख्यक द्विपद-चतुष्पद-मृग-पशु-पक्षी-सरीसृपों के लिए पीने योग्य नहीं है, किन्तु उसी जल में उत्पन्न और संवर्धित जीवों के लिये पेय है। भगवन् ! कालोदसमुद्र के जल का आस्वाद कैसा है ? गौतम ! कालोदसमुद्र के जल का आस्वाद पेशल (मनोज्ञ), मांसल (परिपुष्ट करनेवाला), काला, उड़द की राशि की कृष्णकांति जैसी कांतिवाला है और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है। भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! वह स्वच्छ है, उत्तम जाति का है, हल्का है और स्फटिकमणि जैसी कांतिवाला और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है। भगवन् ! वरुणोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org