________________ अरुणद्वीप की वक्तव्यता] [71 भगवन् ! वह रुचकद्वीप समचक्रवालविष्कंभ वाला है या विषमचक्रवालविष्कंभ वाला है। गौतम ! समचक्रवालविष्कंभ वाला है, विषमचक्रवालविष्कंभ वाला नहीं है। भगवन् ! उसका चक्रवालविष्कंभ कितना है ? यहां से लगाकर सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये यावत् वहां सर्वार्थ और मनोरम नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं / शेष कथन पूर्ववत् / रुचकोदक नामक समुद्र क्षोदोद समुद्र की तरह संख्यात लाख योजन चक्रवालविष्कंभ वाला, संख्यात लाख योजन परिधि वाला और द्वार, द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन वाले हैं। वहां ज्योतिष्कों की संख्या भी संख्यात कहनी चाहिए। क्षोदोदसमुद्र की तरह अर्थ आदि की वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि यहां सुमन और सौमनस नामक दो महद्धिक देव रहते हैं। शेष पूर्ववत् जानना चाहिए / ___ रुचकद्वीप समुद्र से आगे के सब द्वीप समुद्रों का विष्कंभ, परिधि, द्वार, द्वारान्तर, ज्योतिष्कों का प्रमाण-ये सब असंख्यात कहने चाहिए। रुचकोदसमुद्र को सब ओर से घेरकर रुचकवर नाम का द्वीप अवस्थित है, जो गोल है आदि कथन करना चाहिए यावत् रुचकवरभद्र और रुचकवरमहाभद्र नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं / रुचकवरोदसमुद्र में रुचकवर और रुचकवरमहावर नाम के दो देव रहते हैं, जो महद्धिक हैं। रुचकवरावभासद्वीप में रुचकवरावभासभद्र और रुचकवरावभाससमहाभद्र नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं / रुषकवरावभाससमुद्र में रुचकवरावभासवर और रुचकवरावभासमहावर नाम के दो महद्धिक देव हैं। हार द्वीप में हारभद्र और हारमहाभद्र नाम के दो देव हैं। हारसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महद्धिक देव हैं। हारवरद्वीप में हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र नाम के दो महद्धिक देव हैं। हारवरोदसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महद्धिक देव हैं / हारवरावभासद्वीप में हारवरावभासभद्र और हारवरावभासमहाभद्र नाम के दो महद्धिक देव हैं / हारवरावभासोदसमुद्र में हारवरावभासवर और हारवरावभासमहावर नाम के दो मद्धिक देव रहते हैं। __ इस तरह आगे सर्वत्र त्रिप्रत्यवतार और देवों के नाम उद्भावित कर लेने चाहिए। द्वीपों के नामों के साथ भद्र और महाभद्र शब्द लगाने से एवं समुद्रों के नामों के साथ "वर" शब्द लगाने से उन द्वीपों और समुद्रों के देवों के नाम बन जाते हैं यावत् 1. सूर्यद्वीप, 2. सूर्यसमुद्र, 3. सूर्यवरद्वीप, 4. सूर्यवरसमुद्र, 5. सूर्यवराभासद्वीप और 6. सूर्यवरावभाससमुद्र में क्रमशः 1. सूर्यभद्र और सूर्यमहाभद्र, 2. सूर्यवर और सूर्यमहावर, 3. सूर्यवरभद्र और सूर्यवरमहाभद्र, 4. सूर्यवरवर और सूर्यवरमहावर, 5. सूर्यवरावभासभद्र और सूर्यवरावभासमहाभद्र, 6. सूर्यवरावभासवर और सूर्यवरावभासमहावर नाम के देव रहते हैं। -- क्षोदवरद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण तक के द्वीप और समुद्रों में वापिकाएं यावत् बिलपंक्तियां इक्षुरस जैसे जल से भरी हुई हैं और जितने भी पर्वत हैं, वे सब सर्वात्मना वज्रमय हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org