________________ नंदीश्वरद्वीप की वक्तव्यता) [67 मोर पद्मबरवेदिका और वनखंड हैं। इनमें त्रिसोपान-पंक्तियां और तोरण हैं। उन प्रत्येक पुष्करिणियों के मध्यभाग में दधिमुखपर्वत हैं जो चौसठ हजार योजन ऊँचे, एक हजार योजन जमीन में गहरे और सब जगह समान हैं। ये पल्यंक के प्राकार के हैं। दस हजार योजन की इनकी चौडाई है। इकतीस हजार छह सौ तेवीस योजन इनकी परिधि है। ये सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं / इनके प्रत्येक के चारों ओर पद्मवरवेदिका और वनखण्ड हैं। यहां इनका वर्णनक कहना चाहिए / उनमें बहुसमरमणीय भूमिभाग है यावत् वहां बहुत वान-व्यन्तर देव-देवियां बैठते हैं और लेटते हैं और पुण्यफल का अनुभव करते हैं / सिद्धायतनों का प्रमाण अंजनपर्वत के सिद्धायतनों के समान जानना चाहिए, सब वक्तव्यता वैसी ही कहनी चाहिए यावत् पाठ-पाठ मंगलों का कथन करना चाहिए। 183. (घ) तत्थ गंजे से दक्खिणिल्ले अंजणपध्वए तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि गंदाश्रो पुक्खरिणीप्रो पणत्तायो, तं जहा-- भद्दा य विसाला य कुमुया पुंडरिगिणो। नंदुत्तरा य नंदा आनंदा नंदिवद्धणा॥ तं चेव दहिमुहा पव्वया तं चेव पमाणं जाव सिद्धाययणा। तस्थ णं जे से पच्चस्थिमिल्ले अंजणपव्वए तस्स णं चउदिसि चत्तारि गंवा पुक्खरिणीम्रो पण्णत्ताओ, तं जहा णंदिसेणा अमोहा य गोथूभा य सुदंसणा। भद्दा विसाला कुमुया पुंडरिगिणी॥ तं चेव सध्वं भाणियव्वं जाव सिद्धाययणा / / तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणपन्वए तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि गंदा पुक्खरिणीओ तं जहाविजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिया। सेसं तहेव जाव सिद्धाययणा / सव्वा य चिय वण्णणा णायव्वा / तत्थ णं बहवे भवणबइ-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया देवा चाउमासियासु पडिवयासु संवच्छरीएसु वा अण्णेसु बहुसु जिणजम्मण-निक्खमण-णाणुप्पत्ति-परिणिवाणमाइएसु सुभदेवकज्जेसु य देवसमुदएसु य देवसमिईसु य देवसमवाएसु य देवपोयणेसु य एगंतम्रो सहिया समुवागया समाणा पमुइयपक्कीलिया अट्टहियारवाओ महामहिमानो करेमाणा पालेमाणा सुहंसुहेणं विहरंति। कइलासहरिवाहणा य तत्य दुवे देवा महिड्डिया जाव पलिग्रोवमट्ठिया परिवसंति; से तेणोणं गोयमा ! जाव णिच्चा, जोइसं संखेज्ज। 183. (घ) उनमें जो दक्षिण दिशा का अंजनपर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुडरीकिणी / (अथवा नंदोत्तरा, नंदा, आनन्दा और नंदिवर्धना)। उसी तरह दधिमुख पर्वतों का वर्णन उतना ही प्रमाण आदि सिद्धायतन पर्यन्त कहना चाहिए। दक्षिण दिशा के अंजनपर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं। उनके नाम हैंनंदिसेना, अमोधा, गोस्तूपा और सुदर्शना / अथवा भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरीकिणी / सिद्धायतन पर्यन्त सब कथन पूर्ववत् कहना चाहिए। उत्तरदिशा के अंजनपर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं / उनके नाम हैंविजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता / शेष सब वर्णन सिद्धायतन पर्यन्त पूर्ववत् जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org