Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र) का वर्णन] [53 होता है / 77 लवों का एक मुहूर्त होता है / एक मुहूर्त में एक करोड़ सड़सठ लाख सतत्तर हजार दो सौ सोलह (1,67,77,216) प्रावलिकाएं होती हैं। एक मुहूर्त में तीन हजार सात सौ तिहत्तर (3773) उच्छ्वास होते हैं / तीस मुहूतों का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मास की एक ऋत होती है। जैन सिद्धान्तानुसार प्रावट, वर्षा, शरद, हेमन्त, वसन्त और ऋतुएं हैं / ' प्राषाढ और श्रावण मास प्रावृट् ऋतु है, भाद्रपद-आश्विन वर्षाऋतु, कार्तिक-मृगशिर शरद ऋतु, पौष-माध हेमन्तऋतु, फाल्गुन-चैत्र वसन्तऋतु और वैशाख-ज्येष्ठ ग्रीष्मऋतु है। तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर (वर्ष), पांच संवत्सर का एक युग, वीस युग का सौ वर्ष / पूर्वाचार्यों ने एक अहोरात्र, एक मास और एक वर्ष में जितने उच्छ्वास होते हैं, उनका संकलन इन गाथाओं में किया है एगच सयसहस्सं ऊसासाणं तु तेरस सहस्सा। मउयसएण अहिया दिवस-निसि होंति विन्नेया // 1 // मासे वि य उस्सासा लक्खा तित्तीस सहसपणनउइ। सत्त सयाई जाणसु कहियाई पूण्वसूरीहिं // 2 // चत्तारि य कोडोप्रो लक्खा सत्तेब होति नायव्वा / अडयालीस सहस्सा चार सया होंति वरिसेणं // 3 // एक लाख तेरह हजार नौ सौ (1,13,900) उच्छ्वास एक दिन में होते हैं / तेतीस लाख पंचानवै हजार सात सौ (33,95,700) उच्छ्वास एक मास में होते हैं। चार करोड़ सात लाख अडतालीस हजार चार सौ (4,07,48,400) उच्छ्वास एक वर्ष में होते हैं। दस सौ वर्ष का हजार वर्ष और सौ हजार वर्ष का एक लाख वर्ष होते हैं / 84 लाख वर्ष का एक पूर्वाग, 84 लाख पूर्वांग का एक पूर्व होता है / 84 लाख पूर्वो का एक त्रुटितांग, 84 लाख त्रुटितांगों का एक त्रुटित; 84 लाख श्रुटितों का एक अड्डांग, 84 लाख अड्डांगों का एक अड्ड, 84 लाख अड्डों का एक अवधांग 84 लाख अववांगों का एक प्रवव, 84 लाख अववों का एक हूहुकांग, 84 लाख हूहुकांगों का एक हुहुक, 84 लाख हुहुकों का एक उत्पलांग, 84 लाख उत्पलांगों का एक उत्पल, 84 लाख उत्पलों का एक पद्मांग, 1. "प्राषाढाद्या ऋतवः इतिवचनात / ये त्वभिदधति वसन्ताद्या ऋतवः तदप्रमाणमवसातव्यम जनमतोत्तीर्णत्वात्।" -इति वृत्तिः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org