Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ [जीवाजोवाभिगमसूत्र भदन्त ! मनुष्यक्षेत्र से बाहर के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा रूप ये ज्योतिष्क देव क्या ऊवोपपन्न हैं, कल्योपपन्न हैं, विमानोपपन्न हैं, गतिशील हैं या स्थिर हैं, गति में रति करने वाले हैं और क्या गति प्राप्त हैं ? गौतम ! वे देव ऊोपपन्नक नहीं हैं, कल्पोपपन्नक नहीं हैं, किन्तु विमानोपपन्नक हैं। वे गतिशील नहीं हैं, वे स्थिर हैं, वे गति में रति करने वाले नहीं हैं, वे गति-प्राप्त नहीं हैं / वे पकी हुई ईंट के आकार के हैं, लाखों योजन का उनका तापक्षेत्र है। वे विकुर्वित हजारों बाह्य परिषद् के देवों के साथ जोर से बजने वाले वाद्यों, नृत्यों, गीतों और वादित्रों की मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोगोपभोगों का अनुभव करते हैं / वे शुभ प्रकाश वाले हैं, उनकी किरणें शीतल और मंद (मृदु) हैं, उनका आतप और प्रकाश उग्र नहीं है, विचित्र प्रकार का उनका प्रकाश है / कूट (शिखर) की तरह ये एक स्थान पर स्थित हैं। इन चन्द्रों और सूर्यों आदि का प्रकाश एक दूसरे से मिश्रित है। वे अपनी मिली-जुली प्रकाश किरणों से उस प्रदेश को सब अोर से अवभासित, उद्योतित, तपित और प्रभासित करते हैं। भदंत ! जब इन देवों का इन्द्र च्यवित होता है तो वे देव क्या करते हैं ? गौतम ! यावत् चार-पांच सामानिक देव उसके स्थान पर सम्मिलित रूप से तब तक कार्यरत रहते हैं जब तक कि दूसरा इन्द्र वहां उत्पन्न हो। भगवन् ! उस इन्द्र-स्थान का विरह कितने काल तक होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक इन्द्रस्थान इन्द्रोत्पत्ति से विरहित हो सकता है। . पुष्करोदसमुद्र की व्यक्तव्यता __ 180. (अ) पुखरवरं गं दीवं पुक्खरोदे णामं समुद्दे बट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ / पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते ? गोयमा ! संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णते। पुक्खरोदस्स णं समुद्दस्स कति दारा पण्णता? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तहेव सव्वं पुक्खरोदसमुद्दपुरस्थिमपेरंते वरुणवरदीवपुरस्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं पुक्खरोबस्स विजए नामं वारे पण्णत्ते, एवं सेसाणवि। दारंतरम्मि संखेन्जाइं जोयणसयसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / पदेसा जीवा य तहेव / से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ पुक्खरोदे पुक्खरोदे ? गोयमा ! पुक्खरोदस्स णं समुदस्स उदगे अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे पगईए उदगरसेणं सिरिधर-सिरिप्पभा य दो देवा जाव महिड्ढिया जाव पलिओवमट्टिइया परिवसंति / से एतेणठेणं जाव णिच्चे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org