________________ 60] [जीवाजीवाभिगमसूत्र __ भगवन् ! वरुणोदसमुद्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं और होंगे—इत्यादि प्रश्न करना चाहिए। गौतम ! वरुणोदसमुद्र में चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, तारा आदि सब संख्यात-संख्यात कहने चाहिए। क्षीरवरद्वीप और क्षीरोदसमुद्र 181. वारुणवरं णं दीवं खीरवरे णामं दोवे वट्टे जाव चिट्ठइ / सव्वं संखेज्जगं विक्खंभो य परिक्खेवो य जाव अट्ठो। बहूओ खुड्डा-खुड्डियाओ वावीमो जाव सरसरपंतियाओ खोरोदग पडिहत्थाओ पासाईयाओ 4 / तासु णं खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पायपन्धयगा० सम्वरयणामया जाव पडिरूवा / पुंडरोगपुक्खरवंता एस्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति; से एएण→णं जाव णिच्चे जोतिसं सव्यं संखेज्ज। ___खीरवरं णं दीवं खीरोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव परिक्खवित्ताणं चिइ समचक्कवालसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए, संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई विक्खंभपरिक्खेवो तहेव सव्वं जाव अट्ठो। गोयमा ! खीरोयस्स णं समुदस्स उदगं' खंडगुडमच्छंडियोववेए रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स उवट्ठविए आसायणिज्जे विस्सायणिज्जे पोणणिज्जे जाव सव्विदियगायपल्हायणिज्जे जाव वणेणं उवचिए जाव फासेणं भवे एयारवे सिया? जो इणठे समझें। खीरोदस्स णं से उदए एतो इट्टयराए चेव जाव आसाएणं पण्णत्ते / विमलविमलप्पभा एत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव परिवसंति / से तेणछैणं, संखज्ज चंदा जाव तारा। 181. वतुल और वलयाकार क्षीरवर नामक द्वीप वरुणवरसमुद्र को सब ओर से घेर कर रहा हुग्रा है / उसका विष्कंभ (विस्तार) और परिधि संख्यात लाख योजन की है आदि कथन पूर्ववत् कहना चाहिए यावत् नाम सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिए / क्षीरवर नामक द्वीप में बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियां यावत् सरसरपंक्तियां और बिलपंक्तियां हैं जो क्षीरोदक से परिपूर्ण हैं यावत् प्रतिरूप हैं / पुण्डरीक और पुष्करदन्त नाम के दो महद्धिक देव वहां रहते हैं यावत् वह शाश्वत है। उस क्षीरवर नामक द्वीप में सब ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात-संख्यात कहनी चाहिए। उक्त क्षीरवर नामक द्वीप को क्षीरोद नामका समुद्र सब अोर से घेरे हुए स्थित है / वह वतल और वलयाकार है। वह समचक्रवालसंस्थान से संस्थित है, विषमचक्रवालसंस 1. अत्र एवंभूतोऽपि पाठः दृश्यते प्रतिषु परं टीकाकारेण न व्याख्यातं टीकामूलपाठयोर्महद्वैषम्यमत्रान्यत्रापि / "से जहाणामए-सुउसुहीमारुपण्णप्रज्जुणतरुगणसरसपत्तकोमलप्रस्थिग्गत्तणग्गपोंडगवरुच्छचारिणीण लवंगपत्तपुप्फपल्लवकक्कोलगसफल-रुक्खबहुगुच्छगुम्मकलियमलट्ठिमधुपयुरपिपपलीफलितवल्लिवरविवरचारिणीणं अप्पोदगपीतसइरस समभूमिभागणिभयसुहोसियाणं सुप्पेसियसुहात-रोगपरिवज्जिताणं णिरुवयसरीराणं कालप्पसविणीणं बितियततियसमप्पसूयाणं अंजणवरगवलवलयजलधरजच्चंणरिटूभमरपभूयसमप्पभाणं कुडदोहणाणं बद्धस्थिपत्थुयाणं रूढाणं मधुमासकाले संगहनेहो अज्जचातुरक्केव होज्ज तासिं खीरे मधुररस विवगच्छबहुदन्वसंपउत्ते पत्तेयं मंदग्मिसुकढिए पाउत्ते खंडगुड..."। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org