________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा ! वरुणवरे दीवे तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहि-तहिं बहुमो खड्डा-खुड्डियागो जाव बिलपंतियाओ अच्छाप्रो पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयावनसंडपरिक्खित्ताओ वारुणिवरोदगपडिहत्थाओ पासाईयानो 4 / तासु खुड्डा-खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पायपव्वया जाव णं हडहडगा सन्वफलियामया अच्छा तहेव वरुणवरुणप्पभा य एत्य दो देवा महिड्डिया परिवसंति, से तेणठेणं जाव णिच्चे। जोतिसं सव्वं संखेज्जगणं जाव तारागणकोडीओ। 180. (आ) गोल और वलयाकार पुष्करोद नाम का समुद्र वरुणवरद्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ स्थित है / पूर्ववत् कथन करना चाहिए यावत् वह समचक्रवालसंस्थान से संस्थित है। भगवन् ! उसका चक्रवालविष्कंभ और परिधि कितनी है ? गौतम ! वरुणवरद्वीप का विष्कंभ संख्यात लाख योजन का है और संख्यात लाख योजन की उसकी परिधि है / उसके सब ओर एक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड है / पद्मवरवेदिका और वनखण्ड का वर्णन कहना चाहिए। द्वार, द्वारों का अन्तर, प्रदेश-स्पर्शना, जीवोत्पत्ति आदि सब पूर्ववत् कहना चाहिए। भगवन् ! वरुणवरद्वीप, वरुणवरद्वीप क्यों कहा जाता है ? गौतम ! वरुणवरद्वीप में स्थान-स्थान पर यहां-वहां बहुत सी छोटी-छोटी बावड़ियां यावत् बिल-पंक्तियां हैं, जो स्वच्छ हैं, प्रत्येक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से परिवेष्टित हैं तथा श्रेष्ठ वारुणी के समान जल से परिपूर्ण हैं यावत् प्रासादिक दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप हैं। उन छोटी-छोटी बावड़ियों यावत् बिलपंक्तियों में बहुत से उत्पातपर्वत यावत् खडहडग हैं जो सर्वस्फटिकमय हैं, स्वच्छ हैं आदि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए / वहां वरुण और वरुणप्रभ नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं, इसलिए वह वरुणवरद्वीप कहलाता है। अथवा वह वरुणवरद्वीप शाश्वर उसका यह नाम भी नित्य और अनिमित्तिक है। वहां चन्द्र-सूर्यादि ज्योतिष्कों की संख्या संख्यातसंख्यात कहनी चाहिए यावत् वहां संख्यात कोटोकोटी तारागण सुशोभित थे, हैं और होंगे। 180. (इ) वरुणवरं णं दीवं वरुणोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव चिटुइ / समचक्कवालसंठाणसंठिए, नो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए। तहेव सव्वं भाणियव्यं / विक्खंभपरिक्खेवो संखिज्जाई जोयणसयसहस्साई पउमवरवेइया वणसंडे दारंतरे य पएसा जीवा अट्ठो। गोयमा ! वारुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहाणामए चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाइ वा वरसीधु-वरवारुणीइ वा पत्तासवेइ वा पुफ्फासवेइ वा चोयासवेइ वा फलासवेइ वा महुमेरएइ वा जाइप्पसन्नाइ वा खज्जूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा कापिसायणाइ वा सुपक्कखोयरसेइ वा पभूयसंभारसंचिया पोसमाससतभिसयजोगवत्तिया निरुवहतमविसिदिन्नकालोवयारा सुधोया उक्कोसगमयपत्ता अट्ठपिट्ठनिट्ठिया जंबूफलकालिवरप्पसन्ना प्रासला मासला पेसला ईसीओढावलंबिणी ईसीतंबच्छिकरणी ईसीवोच्छेया कडुआ, वण्णेणं उबवेया, गंधेणं उक्वेया, रसेणं उववेया फासेणं उववेया प्रासायणिज्जा विस्सायणिज्जापोणणिज्जा दप्पणिज्जा मयणिज्जा सदिचदियगायपल्हायणिज्जा,' भवे एयारूवे सिया ? 1. प्रस्तुत पाठ में प्रतियों में बहुत पाठभेद हैं। वृत्तिकार के व्याख्यात पाठ को मान्य करते हुए हमने मूलपाठ दिया है। अन्य प्रतियों में 'अट्टपद्विणिट्टिया' के आगे ऐसा पाठ भी है [शेष अगले पृष्ठ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org