________________ घृतवर, घृतोद, क्षोदवर, क्षोदोद को वक्तव्यता] [61 संख्यात लाख योजन उसका विष्कंभ और परिधि है आदि सब वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए यावत् नाम सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिए कि क्षीरोद, क्षीरोद क्यों कहलाता है ? गौतम ! क्षीरोदसमुद्र का पानी चक्रवर्ती राजा के लिये तैयार किये गये गोक्षीर (खीर) जो चतु:स्थान-परिणाम परिणत है, शक्कर, गुड़, मिश्री आदि से अति स्वादिष्ट बताई गई है, जो मंदअग्नि पर पकायी गई है, जो आस्वादनीय, विस्वादनीय, प्रोणनीय यावत् सर्व-इन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाली है, जो वर्ण से सुन्दर है यावत् स्पर्श से मनोज्ञ है। (क्या ऐसा क्षीरोद का पानी है ?) गौतम ! नहीं, इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति देने वाला है। विमल और विमलप्रभ नाम के दो महद्धिक देव वहां निवास करते हैं। इस कारण क्षीरोदसमुद्र क्षीरोदसमुद्र कहलाता है / उस समुद्र में सब ज्योतिष्क चन्द्र से लेकर तारागण तक संख्यात-संख्यात हैं। घृतवर, घृतोद, क्षोदवर, क्षोदोद की वक्तव्यता 182. (अ) खीरोदं गं समुदं घयवरे गामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव चिट्ठा समचक्कवालसंठाणसंठिए नो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए, संखज्जविक्खंभपरिक्खेवे०पएसा जाव अट्ठो। गोयमा ! धयवरे णं दोवे तत्थ-तत्थ बहूओ खुड्डाखुड्डियानो बाबीओ जाब धयोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वगा जाव खडहड० सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा। कणयकणयप्पभा एत्थ दो देवा महिड्डिया, चंदा संखेज्जा। घयवरं णं दीवं घयोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाब चिटुइ समचक्क० तहेव दार पदेसा जीवा य अट्ठो? गोयमा ! घयोदस्स गं समुदस्स उदए-से जहाणामए पप्फुल्लसल्लइविमुक्कल कणियारसरसबसुविसुद्धकोरंटदापिडिततरस्सनिद्धगुणतेयदीवियनिरुवहयविसिद्रसुन्दरतरस्स सुजाय-दहिमथियतदिवसगहियणवणीयपडुवणावियमुक्कड्डिय उद्दावसज्जवीसंदियस्स अहियं पीवरसुरहिगंधमणहरमहरपरिणामदरिसणिज्जस्स पत्थनिम्मलसुहोवभोगस्स सरयकालम्मि होज्ज गोघयवरस्स मंडए, भवे एयारूवे सिया? णो तिणठे समठे, गोयमा ! घयोदस्स णं समुदस्स एत्तो इद्रुतरे जाव अस्साएणं पण्णते, कंतसुकता एत्थ दो देवा महिड्डिया जाय परिवसंति, सेसं तं चेव जाव तारागण कोडीकोडीओ। 182. (अ) वर्तुल और वलयाकार संस्थान-संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है / वह समचक्रवालसंस्थान वाला है, विषमचक्रवालसंस्थान वाला नहीं है। उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहां तक का वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए। गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियां आदि हैं जो घृतोदक से भरी हुई हैं। वहां उत्पात पर्वत यावत् खडहड आदि पर्वत हैं, वे सर्बकंचनमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। वहां कनक और कनकप्रभ नाम के दो महद्धिक देव रहते हैं। उसके ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात-संख्यात है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org