Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [ जीवाजीवाभिगमसूत्र धातकीखण्ड के आगे के समुद्र और द्वीपों में चन्द्रों और सूर्यों का प्रमाण पूर्व के द्वीप या समुद्र के प्रमाण से तिगुना करके उसमें पूर्व-पूर्व के सब चन्द्रों और सूर्यों को जोड़ देना चाहिए। (जैसे घातकीखण्ड में 12 चन्द्र और 12 सूर्य कहे हैं तो कालोदधिसमुद्र में इनसे तिगुने अर्थात् 124 3 = 36 तथा पूर्व-पूर्व के-जम्बूद्वीप के 2 और लवणसमुद्र के 4, कुल 6 जोड़ने पर 42 चन्द्र और सूर्य कालोद समुद्र में हैं / इसी विधि से आगे के द्वीप समुद्रों में चन्द्रों और सूर्यों की संख्या का प्रमाण जाना जा सकता है / / 25 // जिन द्वीपों और समुद्रों में नक्षत्र, ग्रह एवं तारा का प्रमाण जानने की इच्छा हो तो उन द्वीपों और समुद्रों के चन्द्र सूर्यों के साथ-एक-एक चन्द्र-सूर्य परिवार से गुणा करना चाहिए। (जैसे लवणसमुद्र में 4 चन्द्रमा हैं। एक-एक चन्द्र के परिवार में 28 नक्षत्र हैं तो 28 को 4 से गुणा करने पर 112 नक्षत्र लवणसमुद्र में जानने चाहिए। एक-एक चन्द्र के परिवार में 88-88 ग्रह हैं, 8844 = 352 ग्रह लवणसमुद्र में जाने चाहिए / एक चन्द्र के परिवार में छियासठ हजार नौ सौ पचहत्तर कोडाकोडी तारागण हैं तो इस राशि में चार का गुणा करने पर दो लाख सड़सठ हजार नौ सौ कोडाकोडो तारागण लवणसमुद्र में हैं / ) // 26 / / / मनुष्यक्षेत्र के बाहर जो चन्द्र और सूर्य हैं, उनका अन्तर पचास-पचास हजार योजन का है। यह अन्तर चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का जानना चाहिए / // 27 // __ सूर्य से सूर्य का और चन्द्र से चन्द्र का अन्तर मानुषोत्तरपर्वत के बाहर एक लाख योजन का है // 28 // (मनुष्यलोक से बाहर पंक्तिरूप में अवस्थित) सूर्यान्तरित चन्द्र और चन्द्रान्तरित सूर्य अपने अपने तेजःपुज से प्रकाशित होते हैं / इनका अन्तर और प्रकाशरूप लेश्या विचित्र प्रकार की है। (अर्थात् चन्द्रमा का प्रकाश शीतल है और सूर्य का प्रकाश उष्ण है / इन चन्द्र सूर्यों का प्रकाश एक दूसरे से अन्तरित होने से न तो मनुष्यलोक की तरह अति शीतल या अति उष्ण होता है किन्तु सुख-रूप होता है) // 29 // एक चन्द्रमा के परिवार में 88 ग्रह और 28 नक्षत्र होते हैं। ताराओं का प्रमाण आगे की गाथाओं में कहते हैं / / 30 // एक चन्द्र के परिवार में 66 हजार 9 सौ 75 कोडाकोडी तारे हैं // 31 // मनुष्यक्षेत्र के बाहर के चन्द्र और सूर्य अवस्थित योग वाले हैं। चन्द्र अभिजित्नक्षत्र से और सूर्य पुष्यनक्षत्र से युक्त रहते हैं / (कहीं कहीं "अवट्ठिया तेया" ऐसा पाठ है, उसके अनुसार अवस्थित तेज वाले हैं, अर्थात् वहां मनुष्यलोक की तरह कभी अतिउष्णता और कभी अतिशीतलता नहीं होती है।) // 32 // विवेचन उक्त गाथाएं स्पष्टार्थ वाली हैं। केवल १३वी गाथा में जो कहा गया है कि इन चन्द्र सूर्य नक्षत्र ग्रह और तारामों की चालविशेष से मनुष्यों के सुख-दुःख प्रभावित होते हैं, इसका स्पष्टीकरण करते हुए वृत्तिकार लिखते हैं कि--मनुष्यों के कर्म सदा दो प्रकार के होते हैं शुभवेद्य और अशुभवेद्य / कर्मों के विपाक (फल) के हेतु सामान्यतया पांच हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव / कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org