________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र सोहणिसाइ, अवद्धजवरासिसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे, सण्हे जाव पडिलवे / उमओ पासि दोहि पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहि सव्वओ समंता संपरिविखत्ते, वण्णओ दोण्हवि // 178. (अ) हे भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत की ऊँचाई कितनी है ? उसकी जमीन में गहराई कितनी है ? वह मूल में कितना चौड़ा है ? मध्य में कितना चौड़ा है और शिखर पर कितना चौड़ा है ? उसकी अन्दर की परिधि कितनी है ? उसकी बाहरी परिधि कितनी है, मध्य में उसकी परिधि कितनी है और ऊपर की परिधि कितनी है ? / गौतम ! मानुषोत्तरपर्वत 1721 योजन पृथ्वी से ऊँचा है। 430 योजन और एक कोस पृथ्वी में गहरा है / यह मूल में 1022 योजन चौड़ा है, मध्य में 723 योजन चौड़ा और ऊपर 424 योजन चौड़ा है। पृथ्वी के भीतर की इसकी परिधि एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनपचास (1,42,30,249) योजन है। बाह्यभाग में नीचे की परिधि एक करोड़ बयालीस लाख, छत्तीस हजार सात सौ चौदह (1,42,36,714) योजन है। मध्य में एक करोड़ बयालीस लाख चौंतीस हजार आठ सौ तेईस (1,42,34,823) योजन को है। ऊपर की परिधि एक करोड़ बयालीस लाख बत्तीस हजार नौ सौ बत्तीस (1,42,32,932) योजन की है। - यह पर्वत मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतला (संकुचित) है। यह भीतर से चिकना है, मध्य में प्रधान (श्रेष्ठ) और बाहर से दर्शनीय है / यह पर्वत कुछ बैठा हुआ है अर्थात् जैसे सिंह अपने आगे के दोनों पैरों को लम्बा करके पीछे के दोनों पैरों को सिकोड़कर बैठता है, उस रीति से बैठा हुआ है। (शिरःप्रदेश में उन्नत और पिछले भाग में निम्न निम्नतर है। इसी को और स्पष्ट करते हैं कि) यह पर्वत प्राधे यव की राशि के आकार में रहा हुआ है (उर्ध्व-अधोभाग से छिन्न और मध्यभाग में उन्नत है)। यह पर्वत पूर्णरूप से जांबूनद (स्वर्ण) मय है, अाकाश और स्फटिकमणि की तरह निर्मल है, चिकना है यावत् प्रतिरूप है। इसके दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाएं और दो वनखण्ड इसे सब ओर से घेरे हुए स्थित हैं। दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। 178. (आ) से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-माणुसुत्तरे पन्वए माणुसुत्तरे पव्वए ? ___ गोयमा ! माणुसुत्तरस्स णं पव्वयस्स अन्तो मणुया उपि सुवण्णा बाहि देवा / अवुत्तरं च णं गोयमा ! माणुसुत्तरपध्वयं मणुया ण कयावि वीइवइंसु वा वीइवयंति वा वीइवइस्संति वा णण्णत्थ चारोह वा विज्जाहरेहिं वा देवकम्मुणा वा वि, से तेणठेणं गोयमा ! 0 अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे त्ति। जावं च णं माणुसुत्तरे पब्बए तावं च णं अस्सि लोए त्ति पवुच्चइ जावं च णं वासाई वा वासधराई वा तावं च णं अस्सि लोए ति पवुच्चइ जावं च णं गेहाई वा गेहावयणाइ वा तावं च णं अस्सि लोए ति पवुच्चइ, जावं च णं गामाइ वा जाव रायहाणीइ वा तावं च णं अस्सि लोए त्ति पवुच्चइ, जावं च णं परहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा पडिवासुदेवा चारणा विज्जाहरा समणा समणीप्रो सावया सावियाओ मणुया पगइभद्दगा विणीया तावं च गं अस्सि लोए त्ति पवुच्चइ / जावं च णं समयाइ वा आवलियाइ वा आणपाणुइ वा थोवाइ वा लवाइ वा मुहत्ताइ वा दिवसाइ वा अहोरत्ताइ वा पक्खाइ वा मासाइ वा उऊइ वा अयणाइ वा संवच्छराइ वा जुगाइ वा वाससयाइ वा वाससहस्साइ वा वाससयसहस्साइ वा पुटवंगाइ वा पुष्योइ वा तुडियंगाइ वा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org