________________ 44] जिीवाजीवाभिगमसूत्र ग्यारह हजार छह सौ सोलह महाग्रह यहां अपनी चाल चलते हैं और तीन हजार छह सौ छियानवै नक्षत्र चन्द्रादिक के साथ योग करते हैं / / 2 // अठासी लाख चालीस हजार सात सौ (8840700) कोटाकोटी तारागण मनुष्यलोक में शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे / / 3 / / 177. (प्रा) एसो तारापिडो सव्वसमासेण मणुयलोगम्मि / बहिया पुण ताराम्रो जिणेहि भणिया असंखेज्जा // 1 // एवइयं तारग्गं जं भणियं माणसम्मि लोगम्मि / चारं कलुबयापुप्फसंठियं जोइसं चरइ // 2 // रवि-ससि-गह-नक्खत्ता एवइया आहिया मणयलोए। जेसि नामागोयं न पागया पन्नवेहिति // 3 // छावटि पिडगाई चंदाइच्चा मणुयलोगम्मि / छप्पन्नं नक्खत्ता य होंति एक्केक्कए पिडए // 5 // छावट्टि पिडगाइं महग्गहाणं तु मणुयलोगम्मि / छावतरं गहसयं य होइ एक्केक्कए पिडए // 6 // चत्तारि य पंतीओ चंदाइच्चाण मणयलोगम्मि / छावट्टि य छावट्ठि य होइ य एक्केक्किया पंती // 7 // छप्पनं पंतीओ नक्खत्ताणं तु मणयलोगम्मि। छावट्ठी छावट्ठी य होइ एक्केक्किया पंती // 8 // छावत्तरं गहाणं पंतिसयं होई मण्यलोगम्मि / छावट्ठो छावट्ठी य होई एक्केक्किया पंती // 9 // ते मेरु परियडता पयाहिणावत्तमंडला सन्थे / अणवट्ठिय जोगेहिं चंदा सूरा गहगणा य॥१०॥ 177. (आ) इस प्रकार मनुष्यलोक में तारापिण्ड पूर्वोक्त संख्याप्रमाण हैं। मनुष्यलोक में बाहर तारापिण्डों का प्रमाण जिनेश्वर देवों ने असंख्यात कहा है। (असंख्यात द्वीप समुद्र होने से प्रति द्वीप में यथायोग संख्यात असंख्यात तारागण हैं / ) / / 1 // मनुष्यलोक में जो पूर्वोक्त तारागणों का प्रमाण कहा गया है वे सब ज्योतिष्क देवों के विमानरूप हैं, वे कदम्ब के फूल के आकार के (नीचे संक्षिप्त ऊपर विस्तृत उत्तानीकृत अर्धकवीठ के आकार के) हैं तथाविध जगत्-स्वभाव से गतिशील हैं / / 2 // सूर्य, चन्द्र, गृह, नक्षत्र, तारागण का प्रमाण मनुष्यलोक में इतना ही कहा गया है। इनके नाम-गोत्र (अन्वर्थयुक्त नाम) अनतिशायी सामान्य व्यक्ति कदापि नहीं कह सकते, अतएव इनको सर्वज्ञोपदिष्ट मानकर सम्यक रूप से इन पर श्रद्धा करनी चाहिए / / 3 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org