________________ 42] जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा ! अभितरपुक्खरद्धणं माणुसुत्तरेणं पटवएणं सव्यओ समंता संपरिक्खित्ते / से एएण?णं गोयमा! अम्भितरपुक्खरद्धे य अम्भितरपुक्खरद्धे य / अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे। भितरपुक्खरद्धे णं भंते ! केवइया चंदा पभासिसु 3, सा चेव पुच्छा जाव तारागणकोडिकोडीओ ? गोयमा ! बावरि च चंदा बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता। पुक्खरवरदीवड्ढे चरंति एते पभासेंता // 1 // तिषिण सया छत्तीसा छच्च सहस्सा महम्गहाणं तु / / णक्खत्ताणं तु भवे सोलाई दुवे सहस्साई // 2 // अडयाल सयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। दोण्णि सया पुक्खरद्धे तारागण कोडिकोडीणं // 3 // 176. (आ) पुष्करवरद्वीप के बहुमध्य भाग में मानुषोत्तर नामक पर्वत है, जो गोल है और बलयकार संस्थान से संस्थित है / वह पर्वत पुष्करवरद्वीप को दो भागों में विभाजित करता हैआभ्यन्तर पुष्करार्ध और बाह्य पुष्करार्ध / भगवन् ! आभ्यन्तर पुष्कराध का चक्रवालविष्कंभ कितना है और उसकी परिधि कितनी है? गौतम ! आठ लाख योजन का उसका चक्रवाल विष्कंभ है और उसकी परिधि एक करोड़, बयालीस लाख, तीस हजार, दो सौ उनपचास (1,42,30,249) योजन की है / मनुष्यक्षेत्र की परिधि भी यही है। भगवन् ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध आभ्यन्तर पुष्करार्ध क्यों कहलाता है ? गौतम ! आभ्यन्तर पुष्कराध सब ओर से मानुषोत्तरपर्वत से घिरा हुआ है। इसलिये वह आभ्यन्तर पुष्करार्ध कहलाता है / दूसरी बात यह है कि वह नित्य है (अतः यह अनिमित्तक नाम है।) भगवन् ! पाभ्यन्तर पुष्करार्ध में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं और होंगे, आदि वही प्रश्न तारागण कोडाकोडी पर्यन्त करना चाहिए। ___ गौतम ! बहत्तर चन्द्रमा और बहत्तर सूर्य प्रभासित होते हुए पुष्करवरद्वीपार्ध में विचरण करते हैं / / 1 // छह हजार तीन सौ छत्तीस महाग्रह और दो हजार सोलह नक्षत्र गति करते हैं और चन्द्रादि से योग करते हैं / / 2 // अड़तालीस लाख बावीस हजार दो सौ ताराओं की कोडाकोडी वहां शोभित होती थी, शोभित होती है और शोभित होगी।। 3 // विवेचन-सब जगह तारा-परिमाण में कोटी-कोटी से मतलब क्रोड (कोटि) ही समझना चाहिए / पूर्वाचार्यों ने ऐसी ही व्याख्या की है। क्योंकि क्षेत्र थोड़ा है। अन्य आचार्य उत्सेधांगुलप्रमाण से कोटिकोटि को संगति करते हैं / कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org