________________ 32] [जीवाजीवाभिगमसूत्र जंबूए णं सुदंसणाए जंबूदीवाहिवई प्रणाढिए नामं देवे महिलिए जाव पलिओवमठिईए परिवसति, तस्स पणिहाए लवणसमुद्दे नो उवोलेइ नो उप्पीललेइ नो चेव णं एकोदगं करेइ, अवुत्तरं च णं गोयमा ! लोगट्टिई लोगाणुभावे जण्णं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो उवीलेइ नो उप्पीलेइ नो चेव णं एगोदगं करेइ। 173. हे भगवन् ! यदि लवणसमुद्र चक्रवाल-विष्कंभ से दो लाख योजन का है, पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनचालीस योजन से कुछ कम उसकी परिधि है, एक हजार योजन उसकी गहराई है और सोलह हजार योजन उसकी ऊँचाई है कुल मिलाकर सत्तरह हजार योजन उसका प्रमाण है। तो भगवन् ! वह लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप को जल से प्राप्लावित क्यों नहीं करता, क्यों प्रबलता के साथ उत्पीडित नहीं करता? और क्यों उसे जलमग्न नहीं कर देता? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत-ऐरवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियां, श्रावक और श्राविकाएं हैं, (यह कथन तीसरेचौथे-पांचवें आरे की अपेक्षा से है।) (प्रथम आरे की अपेक्षा) वहां के मनुष्य प्रकृति से भद्र, प्रकृति से विनीत, उपशान्त, प्रकृति से मन्द क्रोध-मान-माया-लोभ वाले, मृदु-मार्दवसम्पन्न, पालीन, भद्र और विनोत हैं, उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल-प्राप्लावित, उत्पीडित और जलमग्न नहीं करता है। (छठे पारे की अपेक्षा से) गंगा-सिन्धु-रक्ता और रक्तवती नदियों में महद्धिक यावत् पल्योपम की स्थितवाली देवियां रहती हैं। उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जलमग्न नहीं है क्षुल्लक हिमवंत और शिखरी वर्षधर पर्वतों में महद्धिक देव रहते हैं, उनके प्रभाव से, हेमवत-ऐरण्यवत वर्षों (क्षेत्रों) में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, उनके प्रभाव से, रोहितांश, सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियों में जो महद्धिक देवियां हैं, उनके प्रभाव से, शब्दापाति विकटापाति वृत्तवैताढय पर्वतों में महद्धिक पल्योपम की स्थितिवाले देव रहते हैं, उनके प्रभाव से, महाहिमवंत और रुक्मि वर्षधरपर्वतों में महद्धिक यावत् पल्योपम स्थितिवाले देव रहते हैं, उनके प्रभाव से, हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, गंधापति और मालवंत नाम के वृत्तवैताढ्य पर्वतों में महद्धिक देव हैं, निषध और नीलवंत वर्षधरपर्वतों में महद्धिक देव है, इसी तरह सब द्रहों की देवियों का कथन करना चाहिए, पद्मद्रह तिगिछद्रह केसरिद्रह आदि द्रहों से महद्धिक देव रहते हैं, उनके प्रभाव से, पूर्वविदेहों और पश्चिमविदेहों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियां, श्रावक, श्राविकाएं एवं मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, उनके प्रभाव से, मेरुपर्वत के महद्धिक देवों के प्रभाव से, (उत्तरकुरु में) जम्बू सुदर्शना में अनाहत नामक जंबूद्वीप का अधिपति महद्धिक यावत् पल्योपम स्थिति वाला देव रहता है, उसके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल से प्राप्लावित, उत्पीडित और जलमग्न नहीं करता है। गौतम ! दूसरी बात यह है कि लोकस्थिति और लोकस्वभाव (लोकमर्यादा या जगत्-स्वभाव) ही ऐसा है कि लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीडित और जलमग्न नहीं करता है। ॥तुतीय प्रतिपत्ति में मन्दरोद्देशक समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org