Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र गौतम ! धातकीखण्डद्वीप में बारह चन्द्र उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे / इसी प्रकार बारह सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे।' तीन सौ छत्तीस नक्षण चन्द्र सूर्य से योग करते थे, करते हैं एक-एक चन्द्र के परिवार में 28 नक्षत्र हैं। बारह चन्द्रों के 336 नक्षत्र हैं।) एक हजार छप्पन महाग्रह चलते थे, चलते हैं और चलेंगे। (प्रत्येक चन्द्र के परिवार में 88 महाग्रह हैं / बारह चन्द्रों के 12488=1056 महाग्रह हैं।) पाठ लाख तीन हजार सात सौ कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होगे। कालोदसमुद्र को वक्तव्यता 175. धायइसंडं णं दीवं कालोदे णाम समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठइ। कालोदे णं समुद्दे कि समचक्कवालसंठाणसंठिए विसमचषकवालसंठाणसंठिए ? गोयमा ! समचक्कवालसंठाणसंठिए नो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए। कालोदे णं भंते ! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठजोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं एकाणउहजोयणसयसहस्साई सत्तरिसहस्साई छच्च पंचत्तरे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णते। से णं एगाए पउभयरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं, संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ। कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा! चत्तारि दारा पण्णता, तं जहा-विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए। कहि णं भंते ! कालोदस्स समुद्दस्स विजए णामं दारे पण्णते? गोयमा ! कालोदे समुद्दे पुरथिमपेरते पुक्खरवरदीवपुरथिमद्धस्स पच्चस्थिमेणं सोतोदाए महाणईए उप्पि एस्थ णं कालोदस्स समुहस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते / अद्वैव जोयणाइं तं चेव पमाणं जाव रायहाणीओ। कहि णं भंते ! कालोयस्स समुहस्स वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! कालोयस्स समुद्दस्स दक्षिणपेरते पुक्खरवरदीवस्स दक्षिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्य गं कालोयसमुद्दस्स वेजयंते नामं दारे पण्णत्ते। 1. 'चउवीसं ससिरविणो' का अर्थ 12 चन्द्र और 12 सूर्य समझना चाहिये। 2. उक्तं च-बारस चंदा सूरा नक्खत्तसया य तिन्नि छत्तीसा। एगं च गहसहस्सं छप्पन्न धायइसंडे // 1 // अद्वैव सयसहस्सा तिम्नि सहस्सा य सत्त य सया य / धायइसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीयो // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org