________________ 14) [ जीवाजीवाभिगमसूत्र हे भगवन् ! शंख नामक वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपवत कहां है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर शंख वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपर्वत है। उसका प्रमाण गोस्तूप की तरह है / विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ है / वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड से घिरा हुआ है यावत् यह शंख नामक प्रावासपर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! उस शंख आवासपर्वत पर छोटी छोटी बावड़ियां आदि हैं, जिनमें बहुत से कमलादि हैं। जो शंख की प्राभावाले, शंख के रंगवाले हैं और शंख की प्राकृति वाले हैं तथा वहां शंख नामक महद्धिक देव रहता है / वह शंख नामक राजधानी का आधिपत्य करता हुअा विचरता है / शंख नामक राजधानी शंख आवासपर्वत के पश्चिम में है, आदि विजया राजधानीवत् प्रमाण आदि कहना चाहिए। हे भगवन् ! मनःशिलक वेलंधर नागराज का दकसीम नामक आवासपर्वत किस स्थान पर है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत की उत्तरदिशा में लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर मनःशिलक वेलंधर नागराज का दकसीम नाम का प्रावासपर्वत है। उसका प्रमाण आदि पूर्ववत् कहना चाहिए। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना स्फटिक रत्नमय है, स्वच्छ है यावत् यह दकसीम क्यों कहा जाता है ? गौतम ! इस दकसीम आवासपर्वत से शीता-शीतोदा महानदियों का प्रवाह यहां आकर प्रतिहत हो जाता है— लौट जाता है। इसलिए यह उदक की सीमा करने वाला होने से “दकसीम" कहलाता है / यह शाश्वत (नित्य) है इसलिए यह नाम अनिमित्तक भी है / यहां मनःशिलक नाम का महद्धिक देव रहता है यावत् वह चार हजार सामानिक देवों आदि का आधिपत्य करता हुआ विचरता है / हे भगवन् ! मनःशिलक वेलंधर नागराज की मनःशिला राजधानी कहां है ? गौतम ! दकसीम प्रावासपर्वत के उत्तर में तिरछी दिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने पर अन्य लवणसमुद्र में मनःशिला नाम की राजधानी है। उसका प्रमाण प्रादि सब वक्तव्यता विजया राजधानी के तुल्य कहना चाहिए यावत् वहां मनःशिलक नामक देव महद्धिक और एक पल्योपम की स्थिति वाला रहता है / वेलंधर नागराजों के आवासपर्वत क्रमशः कनकमय, अंकरत्नमय, रजतमय और स्फटिकमय हैं / अनुवेलंधर नागराजों के पर्वत रत्नमय ही हैं। 160. कहि णं भंते ! अणुवेलंधरणागरायाओ पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि अणुवेलंधरणागरायाओ पण्णत्ता, तं जहा कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरुणप्पभे। एतेसि भंते ! चउण्हं अणुवेलंधरणागरायाणं कति आवासपब्वया पण्णता ? गोयमा ! चत्तारि आवासपम्बया पण्णत्ता, तं जहा-कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरुणप्पभे। कहि णं भंते ! कक्कोडगस्स अणुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए णाम प्रावासपव्वए पण्णते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमेणं लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्साई प्रोगाहित्ता एस्थ णं कक्कोडगस्स नागरायस्स कक्कोडए णामं प्रावासपब्वए पण्णत्ते, सत्तरस-इक्कवीसाइं . जोयणसयाई तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स गरि सम्वरयणामए अच्छे जाव निरवसेसं जाव सपरिवार; अट्ठो से बहूई उप्पलाई कक्कोडगप्पभाई सेसं तं चेव णवरि कक्कोडगपव्ययस्स उत्तरपुरच्छिमेणं, एवं तं चेव सव्वं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org