________________ तृतीय प्रतिपत्ति: लवणशिखा की वक्तव्यता] [13 गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दोवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणणं लवणसमुई बायालोसं जोयणसहस्साई प्रोगाहित्ता एत्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दोभासे णामं आवासपव्वए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स, णवरि सव्वअंकामए अच्छे जाव पडिरूवे जाव अट्ठो भाणियव्यो / गोयमा! दोभासे णं आवासपव्वए लवणसमुद्दे अट्ठजोयणियखेत्ते दगं सम्वनो समंता प्रोभासेइ, उज्जोवेइ, तवेइ, पभासेइ, सिवए एत्थ देवे महिटिए जाव रायहाणी से दक्खिणेणं सिविगा दोभासस्स सेसं तं चेव / कहि णं भंते ! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं प्रावासपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं बायालीसं जोयणसहस्साई एस्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपन्चए, तं चेव पमाणं, णवरं सवरयणामए अच्छे / से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेण जाव अट्ठो बहूओ खुड्डा खुड्डियानो जाव बहूइं उप्पलाई संखाभाई संखवण्णाई। संखे एत्थ देवे महिड्ढिए जाव रायहाणोए, पच्चत्थिमेणं संखस्स आवासपन्वयस्स संखा नाम रायहाणी, तं चेव पमाणं / कहि णं भंते ! मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स उदगसीमाए णामं आवासपब्धए पण्णत्ते? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स उत्तरेणं लवणसमुई बायालीसं जोयणसहस्साई प्रोगाहिता एत्थ णं मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स उदगसीमाए णामं आवासपन्चए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं / णवरि सव्वफलिहामए अच्छे जाव अट्ठो; गोयमा ! दगसोमंते णं आवासपटवए सीतासीतोदगाणं महाणदीणं तत्थ गए सोए पडिहम्मइ, से तेण?णं जाव णिच्चे, मणोसिलए एत्थ देवे महिडिए जाव से गं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सोणं जाव विहरइ / कहि णं भंते ! मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स मणोसिलाणामं रायहाणी? गोयमा ! दगसोमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णम्मि लवणसमुद्दे एस्थ गं मणोसिलिया णामं रायहाणी पण्णत्ता, तं चेव पमाणं जाव मणोसिलए देवे। कणगंकरयय-फालिहमया य वेलंधराणमावासा / अणुवेलंधरराईण पव्वया होति रयणमया // भगवन ! शिवक वेलंधर नागराज का दकाभास नामक प्रावास पर्वत कहां है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर शिवक वेलंधर नागराज का दकाभास नामका आवासपर्वत है। जो गोस्तूप आवासपर्वत का प्रमाण है, वही इसका प्रमाण है / विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना अंकरत्नमय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है / यावत् यह दकाभास क्यों कहा जाता है ? गौतम ! लवणसमुद्र में द काभास नामक आवासपर्वत पाठ योजन के क्षेत्र में पानी को सब ओर अति विशुद्ध अंकरत्नमय होने से अपनी प्रभा से अवभासित करता है, (चन्द्र की तरह) उद्योतित करता है, (सूर्य की तरह) तापित करता है, (ग्रहों की तरह) चमकाता है तथा शिवक नाम का महद्धिक देव यहां रहता है, इसलिए यह दकाभास कहा जाता है। यावत् शिवका राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। वह शिवका राजधानी दकाभास पर्वत के दक्षिण में अन्य लवणसमुद्र में है, आदि कथन विजया राजधानी की तरह कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org