________________ तृतीय प्रतिपत्ति : लवणशिखा की वक्तव्यता] [15 कद्दमस्स वि सो चेव गमो अपरिसेसिओ, णवरि दाहिणपुरत्थिमेणं प्रावासो विज्जुष्पमा रायहाणी वाहिणपुरस्थिमेणं / कइलासे वि एवं चेव णवरि दाहिणपच्चत्थिमेणं केलासा वि रायहाणी तए चेव दिसाए। __ अरुणप्पभे वि उत्तरपच्चस्थिमेणं रायहाणी वि ताए चेव दिसाए / चत्तारि वि एगप्पमाणा सव्वरयणामयाय। 160. हे भगवन् ! अनुवेलंधर नागराज (वेलंधरों की आज्ञा में चलने वाले) कितने हैं ? गौतम ! अनुवेलंधर नागराज चार हैं, उनके नाम हैं-कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ / हे भगवन् ! इन चार अनुवेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत हैं ? गौतम ! चार आवासपर्वत हैं, यथा-कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ / हे भगवन् ! कर्कोटक अनुवेलंधर नागराज का कर्कोटक नाम का आवासपर्वत कहां है ? गौतम ! जंबूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर-पूर्व में (ईशानकोण में) लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर कर्कोटक नागराज का कर्कोटक नामक आवासपर्वत है जो सत्रह सौ इकवीस (1721) योजन ऊंचा है आदि वही प्रमाण कहना चाहिए जो गोस्तूप पर्वत का है। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ है यावत् सपरिवार सिंहासन तक सब वक्तव्यता पूर्ववत् जानना चाहिए / कर्कोटक नाम देने का कारण यह है कि यहां की बावड़ियों आदि में जो उत्पल कमल आदि हैं, वे कर्कोटक के प्राकार-प्रकार और वर्ण के हैं / शेष पूर्ववत् कहना चाहिए / यावत् उसकी राजधानी कर्कोटक पर्वत के उत्तर-पूर्व में तिरछे असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने पर अन्य लवणसमुद्र में है। प्रमाण आदि सब पूर्ववत् है। 1. कर्दम नामक' आवासपर्वत के विषय में भी पूरा वर्णन पूर्ववत् है। विशेषता यह है कि मेरुपर्वत के दक्षिण-पूर्व (आग्नेयकोण) में लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन जाने पर यह कर्दमपर्वत स्थित है। विद्युत्प्रभा इसकी राजधानी है जो इस आवासपर्वत से दक्षिण-पूर्व (आग्नेयकोण) में असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने पर अन्य लवणसमुद्र में है, अादि वर्णन पूर्वोक्त विजया राजधानी की तरह जानना चाहिए। कैलाश नामक प्रावासपर्वत के विषय में पूरा वर्णन पूर्ववत् है। विशेषता यह है कि यह मेरु से दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में है। इसकी राजधानी कैलाशा है और वह कैलाशपर्वत के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने पर अन्य लवणसमुद्र में है / अरुणप्रभ नामक आवासपर्वत मेरुपर्वत के उत्तर-पश्चिम (वायव्यकोण) में है। राजधानी भी अरुणप्रभ आवासपर्वत के वायव्य कोण में असंख्य द्वीप-समुद्रों के बाद अन्य लवणसमुद्र में है। शेष सब वर्णन विजया राजधानी की तरह है। ये चारों आवासपर्वत एक ही प्रमाण के हैं और सर्वात्मना रत्नमय हैं। 1. कर्दम पावासपर्वत का देव स्वभावतः यक्षकर्दमप्रिय है। यक्षकर्दम का अर्थ है-कुकुम, अगुरु,कपूर, कस्तूरी, चन्दन आदि के मिश्रण से जो सुगन्धित द्रव्य निर्मित होता है, वह यक्षकर्दम है। पूर्वपद का लोप होने से कर्दम कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org