________________ [19 तृतीय प्रतिपत्ति : जम्बूद्वीपगत चन्द्रद्वीपों का वर्णन] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के दो सूर्यों के दो सूर्यद्वीप कहां हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के दो सूर्यों के दो सूर्यद्वीप हैं। उनका उच्चत्व, प्रायाम-विष्कंभ, परिधि, वेदिका, वनखण्ड, भूमिभाग, वहां देव-देवियों का बैठनाउठना, प्रासादावतंसक, उनका प्रमाण, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन आदि चन्द्रद्वीप की तरह कहना चाहिए। हे भगवन् ! सूर्य द्वीप, सूर्यद्वीप क्यों कहलाते हैं ? हे गौतम ! उन द्वीपों की बावड़ियों आदि में सूर्य के समान वर्ण और आकृति वाले बहुत सारे उत्पल आदि कमल हैं, इसलिए वे सूर्यद्वीप कहलाते हैं। ये सूर्यद्वीप द्रव्यपेक्षया नित्य हैं। अतएव इनका नाम भी शाश्वत है। इनमें सूर्य देव, सामानिक देव प्रादि का यावत् ज्योतिष्क देव-देवियों का आधिपत्य करते हुए विचरते हैं यावत् इनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों से पश्चिम में असंख्यात द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं। उनका प्रमाण आदि पूर्वोक्त चन्द्रादि राजधानियों की तरह मानना चाहिए यावत् वहां सूर्य नामक महद्धिक देव हैं / 163. कहि णं भंते ! अभितरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं वीवा पण्णता? गोयमा ! जंबुद्दोवे दोवे मंदरस्स पथ्वयस्स पुरत्यिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साई मोगाहिता एस्थ णं अग्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीया पण्णत्ता। जहा जम्बुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा, गवरि रायहाणीयो अण्णमि लवणे सेसं तं चेव / एवं प्रभितरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साई तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ। कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा पण्णता? गोयमा ! लवणसमुहस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुई पच्चस्थिमेणं बारस जोयणमहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं बाहिरलावणगाणं चंददोवा णामं दोवा पण्णत्ता, धायइसंडदीवंतेणं अकोणणवतिजोयगाइं चत्तालीसं च पंचणउतिभागे जोयणस्स ऊसिया जलंतानो, लवणसमुदंतेणं दो कोसे असिया बारस जोयणसहस्साई आयाम-विक्ख भेणं पउमवरवेइया वनसंडा बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा मणिपेढिया सोहासणा सपरिवारा सो चेव अट्ठो रायहाणोओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णमि लवणसमुद्दे तहेव सव्वं / कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं सूराणं सूरदोवा णामं दोबा पण्णता ? गोयमा ! लवणसमुद्दपच्चथिमिल्लानो वेदियंताओ लवणसमुई :पुरस्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई धायइसंडदीवंतेणं अद्धकोणणउइं जोयणाई चत्तालीसं च पंचणउइभागे जोयणस्स दो कोसे ऊसिया सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे लवणे चेव बारस जोयणा तहेव सवं भाणियब्वं / 163. हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रहकर जम्बूद्वीप की दिशा में शिखा से पहले विचरने वाले (आभ्यन्तर लावणिक) चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहां हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org