________________ 22] [जीवाजीवाभिगमसूत्र __ इसी प्रकार कालोदधिसमुद्र के सूर्यद्वीपों के संबंध में भी जानना चाहिए। विशेषता यह है कि कालोदधिसमुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से और कालोदधिसमुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन आगे जाने पर ये आते हैं। इसी तरह पूर्ववत जानना चाहिए यावत् इनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पश्चिम में अन्य कालोदधि में हैं, आदि सब पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के पूर्वी वेदिकान्त से पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर चन्द्रद्वीप हैं, इत्यादि पूर्ववत् / अन्य पुष्करवरद्वीप में उनकी राजधानियां हैं। राजधानियों के सम्बन्ध में सब पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी तरह से पुष्करवरद्वीपगत सूर्यों के सूर्यद्वीप पुष्करवरद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं, आदि पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् राजधानियां अपने द्वीपों की पश्चिमदिशा में तिर्यक् असंख्यात द्वीप-समुद्रों को लांघने के बाद अन्य पुष्करवरद्वीप में बारह हजार योजन की दूरी पर हैं। पुष्करवरसमुद्रगत सूर्यों के सूर्यद्वीप पुष्करवरसमुद्र के पूर्वी वेदिकान्त से पश्चिमदिशा में बारह हजार योजन अागे जाने पर स्थित हैं। राजधानियां अपने द्वीपों की पूर्वदिशा में तिर्यक् असंख्यात द्वीप-समुद्रों का उल्लंघन करने पर अन्य पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन से परे हैं। इसी प्रकार शेष द्वीपगत चन्द्रों की राजधानियां चन्द्रद्वीपगत पूर्वदिशा की वेदिकान्त से मनन्तर समुद्र में बारह हजार योजन जाने पर कहनी चाहिए। शेष द्वीपगत सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने द्वीपगत पश्चिम वेदिकान्त से अनन्तर समुद्र में हैं, चन्द्रों की राजधानियां अपने-अपने चन्द्रद्वीपों से पूर्व दिशा में अन्य अपने-अपने नाम वाले द्वीप में हैं, सूर्यों की राजधानियां अपने-अपने सूर्यद्वीपों से पश्चिम दिशा में अन्य अपने सदृश नाम वाले द्वीप में बारह हजार योजन के बाद हैं। शेष समुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप अपने-अपने समुद्र के पूर्व वेदिकान्त से पश्चिम दिशा में बारह हजार योजन के बाद हैं / सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने-अपने समुद्र के पश्चिमी वेदिकांत से पूर्व दिशा में बारह हजार योजन के बाद हैं। चन्द्रों की राजधानियां अपने-अपने द्वीपों की पूर्व दिशा में अन्य अपने जैसे नाम वाले समुद्रों में हैं। सूर्यों की राजधानियां अपने-अपने द्वीपों की पश्चिम दिशा में हैं। 166. इमे णामा अणुगंतव्वा' जंबुद्दीवे लवणे धायइ-कालोद-पुक्खरे बरुणे। खीर-घय-इक्खु (वरो य) गंदी अरुणवरे कुडले रुयगे // 1 // प्राभरण-वत्थ-गंधे उप्पल-तिलए य पुढवि-णिहि-रयणे। वासहर-दह-नईओ विजयावक्खार-कप्पिदा // 2 // पुर-मंदरमावासा कूडा णक्खत्त-चंद-सूरा य / एवं भाणियव्वं / 166. असंख्यात द्वीप और समुद्रों में से कितनेक द्वीपों और समुद्रों के नाम इस प्रकार हैं जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरसमुद्र, वारुणिवरद्वीप, वारुणिवरसमुद्र, क्षीरवरद्वीप, क्षीरवरसमुद्र, घृतवरद्वीप, घृतवरसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, 1. वृत्ति में इस सूत्र की व्याख्या नहीं है, न इस सूत्र का उल्लेख ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org