Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 24] [जीवाजीवाभिगमसूत्र द्वोपों के पश्चिम में देवोदकसमुद्र में असंख्यात हजार योजन जाने पर स्थित हैं। शेष वर्णन विजया राजधानी के समान कहना चाहिए। देवसमुद्रगत सूर्यों के विषय में भी ऐसा ही कहना चाहिए। विशेषता यह है कि देवोदकसमुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से देवोदक समुद्र में पूर्व दिशा में बारह हजार योजन जाने पर ये स्थित हैं। इनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पूर्व में देवोदकसमुद्र में असंख्यात हजार योजन ागे जाने पर आती हैं / इसी प्रकार नाग, यक्ष, भूत और स्वयंभूरमण चारों द्वीपों और चारों समुद्रों के चन्द्र-सूर्यों के द्वीपों के विषय में कहना चाहिए। स्वयंभूरमणद्वीपगत चन्द्र-सूर्यद्वीप 167. (प्रा) कहि णं भंते ! सयंभूरमणदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता ? सयंभूरमणस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ सयंभूरमणोदगं समुदं बारस जोयणसहस्साई तहेव रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं संयमूरमणोदगं समुदं पुरथिमेणं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता तं चेव / एवं सूराणवि / सयंभूरमणस्स पच्चस्थिमिल्लाओ वेवियंताओ रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पच्चस्थिमिल्लाणं सयंभूरमणोदं समुदं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता सेसं तं चेव / / कहि णं भंते ! सयंभूरमणसमुद्दगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दोवा पण्णता ? सयंभूरमणस्स समुहस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ सयंभूरमणसमुई पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, सेसं तं चेव / एवं सूराणवि / सयंभूरमणस्स पच्चथिमिल्लाओ वेइयंताओ सयंभूरमणोदं समुदं पुरस्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं सयंभूरमणं समुदं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं सयंभूरमणसमुद्दगाणं सूराणं जाव सूरा देवा / 167. (ग्रा) हे भगवन् ! स्वयंभूरमणद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नाम द्वीप कहां हैं ? गौतम ! स्वयंभूरमणद्वीप के पूर्वीय वेदिकान्त से स्वयंभूरमणसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर वहां स्वयंभूरमणद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं / उनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पूर्व में स्वयंभूरमणसमुद्र के पूर्वदिशा की ओर असंख्यात हजार योजन जाने पर आती हैं, आदि पूर्ववत् कथन करना चाहिए। इसी तरह सूर्यद्वीपों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि स्वयंभूरमणद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से स्वयंभूरमणसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर ये द्वीप स्थित हैं। इनको राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पश्चिम में स्वयंभूरमणसमुद्र में पश्चिम की ओर असंख्यात हजार योजन जाने पर आती हैं, आदि सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। हे भगवन् ! स्वयंभूरमणसमुद्र के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहां हैं ? गौतम ! स्वयंभूरमणसमुद्र * के पूर्वी वेदिकान्त से स्वयंभूरमणसमुद्र में पश्चिम की ओर बारह हजार योजन जाने पर ये द्वीप पाते हैं, आदि पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी तरह स्वयंभूरमणसमुद्र के सूर्यों के विषय में समझना चाहिए। विशेषता यह है कि स्वयंभूरमणसमुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से स्वयंभूरमणसमुद्र में पूर्व की ओर बारह हजार योजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org