Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: लवणशिखा की वक्तव्यता] [11 लवणसमुद्र की प्राभ्यन्तर वेला को अर्थात् जम्बूद्वीप की ओर बढ़ती हुई शिखा को और उस पर बढ़ते हुए जल को सीमा से आगे बढ़ने से रोकने वाले भवनपतिनिकाय के अन्तर्गत आने वाले बयालीस हजार नागकुमार देव हैं। इसी तरह लवणसमुद्र की बाह्य वेला अर्थात् धातकीखण्ड की ओर अभिमुख होकर बढ़ने वाली शिखा और उसके ऊपर की अतिरेक वृद्धि को आगे बढ़ने से रोकने वाले बहत्तर हजार नागकुमार देव हैं / लवणसमुद्र के अनोदक को (देशोन अर्धयोजन से ऊपर बढ़ने वाले जल को) रोकने वाले साठ हजार मागकुमार देव हैं। ये नागकुमार देव लवणसमुद्र की वेला को मर्यादा में रखते हैं / इन सब वेलंधर नागकुमारों को संख्या एक लाख चौहत्तर हजार है। 159. (अ)—कति गं भंते ! वेलंधरा णागराया पण्णता? गोयमा ! चत्तारि वेलंधरा णागराया पण्णता, तं जहा—गोथूभे, सिवए, संखे, मणोसिलए। एतेसि णं भंते ! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपम्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वया पण्णता, तं जहा-गोथूभे, उदगभासे, संखे, दगसीमाए। कहिणं भंते ! गोथूभस्स बेलंधरणागरायस्स गोथूभे णामं प्रावासपब्बए पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरथिमेणं लवणं समुदं बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं गोयूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे णामं प्रावासपव्वए पण्णत्ते सत्तरस एकवीसाई जोयणसयाई उद्धं उच्चतेणं चत्तारि तोसे जोयणसए कोसं च उन्वेणं मूले दसवावीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं, मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसए उरि चत्तारि चउवोसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं मूले तिण्णि जोयणसहस्साई दोणि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मज्से दो जोयणसहस्साई वोण्णि य छलसीए जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले विस्थिपणे मज्झे संखित्ते उपि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे / से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं य वणसंडेणं सव्वनो समंता संपरिक्खित्ते। दोण्ह वि वण्णनो। गोथूभस्स णं प्रावासपब्वयस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंति / तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं पाासायव.सए बावट्ठ जोयणद्धं च उड्ढं उच्चत्तेणं तं चेव पमाणं श्रद्धं पायामविक्खंभेणं वण्णओ जाव सोहासणं सपरिवारं / से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ गोथूभे आवासपव्वए गोथूभे आवासपव्वए ? गोयमा! गोथूभे णं आवासपव्यए तत्थ तत्थ देसे तहि तहिं बहुओ खुड्डाखुड्डियानो जाव गोथूभवण्णाई बहुइं उप्पलाइं तहेव जाव गोथूभे तत्थ देवे महिडिए जाव पलिओवमट्ठईए परिवसति / से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभयस्स पावासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरइ / से तेणठेणं जाव णिच्चा। रायहाणी पुच्छा ? गोयमा ! गोथूभस्स प्रावासपवयस्स पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वोईवइत्ता अण्णम्मि लवणसमुद्दे तं चेष पमाणं तहेव सव्वं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org