Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : लवणशिखा की वक्तव्यता] और पूर्णिमा तिथियों में विशेष रूप से बढ़ता है और घटता है (अर्थात् लवणसमुद्र में ज्वार और भाटा का क्रम चलता है / जब उन्नामक वायुकाय का सद्भाव होता है तब जलवृद्धि और जब उन्नामक वायु का प्रभाव होता है तब जलवृद्धि का प्रभाव होता है / ) 157. लवणे णं भंते ! समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं कतिखुत्तो अतिरेगं अतिरेगं बड्डइ वा हायइ वा ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अतिरेगं अतिरेगं बड्डइ वा हायइ था। से केण?णं भंते ! एवं बुच्चई, लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अतिरेगं अतिरेगं वड्डइ वा हायइ वा ? गोयमा ! उड्डमतेसु पायालेसु वड्डइ आपूरिएसु पायालेसु हायइ, से तेणटेणं, गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अतिरेगं अतिरेगं वड्डइ वा हायइ वा / 157. हे भगवन् ! लवणसमुद्र (का जल) तीस मुहूर्तों में (एक अहोरात्र में) कितनी बार विशेषरूप से बढ़ता है या घटता है ? हे गौतम ! लवणसमुद्र का जल तीस मुहूर्तों में (एक अहोरात्र में) दो बार विशेष रूप से उछलता है और घटता है / हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि लवणसमुद्र का जल तीस मुहूर्तों में दो बार विशेष रूप से उछलता है और फिर घटता है ? हे गौतम ! निचले और मध्य के विभागों में जब वायु के संक्षोभ से पातालकलशों में से पानी ऊँचा उछलता है तब समुद्र में पानी बढ़ता है और जब वे पातालकलश वायु के स्थिर होने पर जल से आपूरित बने रहते हैं, तब पानी घटता है / इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि लवणसमुद्र तीस मुहूर्तों में दो बार विशेष रूप से उछलता है और घटता है। (तथाविध जगत्-स्वभाव होने से ऐसी स्थिति एक अहोरात्र में दो बार होती है।) लवणशिखा को वक्तव्यता 158. लवणसिहा णं भंते ! केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं अइरेगं बडइ वा हायइ बा ? गोयमा ! लवणसिहा गं वस जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं देसूणं अद्धजोयणं अइरेगं वड्डइ वा हायइ वा। लवणस्स णं भंते / समुदस्स कति गागसाहस्सोमो अभितरियं वेलं धारेंति ? कइ नागसाहस्सोओ वाहिरियं वेलं धारति ? कइ नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धारेंति ? गोयमा ! लवणसमुहस्स बायालीसं गागसाहस्सीओ अभितरियं वेलं धारैति, बावरि गागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारेंति, सठि णागसाहस्सोनो अग्गोदयं धारेंति, एवमेव सपुव्यावरण एगा णागसयसाहस्सी चोवर च गागसहस्सा भवंतीति मक्खाया। 158. हे भगवन् ! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कम्भ से कितनी चौड़ी है और वह कितनी बढ़ती है और कितनी घटती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org