Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति : नपुंसक की स्थिति] [167 विवेचनः-नपुंसकाधिकार में उसके भेद-प्रभेद बताने के पश्चात् उसकी स्थिति का निरूपण इस सूत्र में किया गया है। सामान्यतया नपुसक की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है / जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति तिथंच और मनुष्य नपुंसक की अपेक्षा से है और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम भी स्थिति सप्तमपृथ्वी नारक नपुंसक को अपेक्षा से है।। विशेष विवक्षा में प्रथम नारक नपुंसकों की स्थिति कहते हैं। सामान्यतः नैरयिक नपुंसक की जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। विशेष विवक्षा में अलग-अलग नरकपृथ्वियों के नारकों को स्थिति निम्न है की स्थिति नारकपृथ्वी नपुंसक का नाम जघन्य उत्कृष्ट 1. रत्नप्रभानारक नपुंसक दस हजार वर्ष एक सागरोपम 2. शर्कराप्रभानारक नपुंसक एक सागरोपम तीन सागरोपम 3. बालुकाप्रभानारक नपुसक तीन सागरोपम सात सागरोपम 4. पंकप्रभानारक नपूसक सात सागरोपम दस सागरोपम 5. धूमप्रभानारक नपुंसक दस सागरोपम सत्रह सागरोपम 6. नमःप्रभानारक नपुसक सत्रह सागरोपम बावीस सागरोपम 7. अधःसप्तमनारक नपुंसक बावीस सागरोपम तेतीस सागरोपम सामान्यतः तिर्यंच नपुसकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है। तिर्यञ्च नपुंसकों की स्थिति तिर्यकनपुंसकों के भेद जघन्य उत्कृष्ट समुच्चय एकेन्द्रिय नपुसक अन्तर्मुहूर्त बावीस हजार वर्ष पृथ्वीकाय नपुसक बावीस हजार वर्ष अपकाय सात हजार वर्ष तेजस्काय तीन अहोरात्रि वायुकाय तीन हजार वर्ष वनस्पतिकाय दस हजार वर्ष द्वोन्द्रिय बारह वर्ष श्रीन्द्रिय उनपचास अहोरात्रि चतुरिन्द्रिय , छह मास सामान्य पंचेन्द्रिय तिर्यंच नपुसक पूर्वकोटि जलचर , स्थलचर , " " खेचर , " " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org