________________ तृतीय प्रतिपत्ति मनुष्य का अधिकार तिर्यक्योनिकों का कथन करने के पश्चात् अब क्रमप्राप्त मनुष्य का अधिकार चलता है। उसका प्रादिसूत्र है 105. से कि तं मणुस्सा? मणुस्सा दुविहा पण्णता, तंजहा-समुच्छिममणुस्सा य गम्भवक्कंतियमणस्सा य / [105] हे भगवन् ! मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के हैं, यथा-१. सम्मूच्छिममनुष्य और 2. गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्य / 106. से कितं समुच्छिममगुस्सा? समुच्छिममणुस्सा एगागारा पण्णत्ता। कहिं गं भंते ! संमुच्छिममगुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते जहा पण्णवणाए जाव से तं समुच्छिममणुस्सा। [106] भगवन् ! सम्मूच्छिममनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! सम्मूच्छिममनुष्य एक ही प्रकार के कहे गये हैं। भगवन् ! ये सम्मूछिममनुष्य कहाँ पैदा होते हैं ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में (14 अशुचिस्थानों में उत्पन्न होते हैं) इत्यादि जो वर्णन प्रज्ञापना— सूत्र में किया गया है, वह सम्पूर्ण यहाँ कहना चाहिए यावत् यह सम्मूच्छिममनुष्यों का कथन हुआ। विवेचन–सम्मूच्छिममनुष्यों के उत्पत्ति के 14 अशुचिस्थान तथा उनकी अन्तर्मुहूर्त मात्र प्रायु प्रादि के सम्बन्ध में प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद में विस्तृत वर्णन है तथा इसी जीवाजीवाभिगमसूत्र की द्वितीय प्रतिपत्ति में पहले इनका वर्णन किया जा चुका है / जिज्ञासु वहाँ देख सकते हैं / 107. से कितं गम्भवक्कंतियमणस्सा ? गम्भवतियमणुस्सा तिविहा पण्णता, तंजहा–१. कम्ममूमगा, 2. अकम्मभूमगा, 3. अंतरदीवगा। [107] हे भगवन् ! गर्भव्युत्क्रांतिकमनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य तीन प्रकार के हैं, यथा--१. कर्मभूमिक, 2. अकर्मभूमिक और 3. प्रान्तीपिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org