________________ तृतीय प्रतिपत्ति : सम्यम्-मिथ्याक्रिया का एक साय न होना] [287 पकरणताए सम्मत्तकिरियं पकरे एवं खल एगे जीवे एगेणं समएणं वो किरियाओ परेइ, तं जहासम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च / से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा! जणं ते अन्नउस्थिया एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति एवं परुति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ तहेव जाव सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च, जे ते एवमाहंसु तं गं मिच्छा; अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जाय परूवेमि एवं खलु एगे जोवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेई, तं जहा-सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा। जं समयं सम्मतकिरियं पकरेइ नो तं समयं मिच्छतकिरियं पकरेइ / तं चेव जं समयं मिच्छतकिरियं पकरेइ नो तं समयं सम्मसकिरियं पकरे / सम्मत्तकिरियापकरणयाए नो मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, मिच्छत्तकिरियापकरणयाए नो सम्मतकिरियं पकरेइ / एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग किरियं पकरे, तं जहा-सम्मसकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा / से तं तिरिक्खजोणिय-उद्देसओ बीमो समतो। [104] हे भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार बोलते हैं, इस प्रकार प्रज्ञापना करते हैं, इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि 'एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, कक्रिया और मिथ्याक्रिया / जिस समय सम्यकक्रिया करता है उसी समय मिथ्याक्रिया भी करता है, और जिस समय मिथ्याक्रिया करता है, उस समय सम्यकक्रिया भी करता है / सम्यक्क्रिया करते हुए (उसके साथ ही) मिथ्याक्रिया भी करता है और मिथ्याक्रिया करने के साथ ही सम्यक्रिया भी करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, यथा- सम्यक्क्रिया और मिथ्याक्रिया।' हे भगवन् ! उनका यह कथन कैसा है ? हे गौतम ! जो वे अन्यतीथिक ऐसा कहते हैं, ऐसा बोलते हैं, ऐसी प्रज्ञापना करते हैं और ऐसी प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है-सम्यक्रिया और मिथ्याक्रिया / जो अन्यतीथिक ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कथन करते हैं। गौतम ! मैं ऐसा कहता हैं यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है, यथा सम्यकक्रिया अथवा मिथ्याक्रिया। जिस समय सम्यक्रिया करता है उस समय मिथ्याक्रिया नहीं करता और जिस समय मिथ्याक्रिया करता है उस समय सभ्यक्रिया नहीं करता है और मिथ्याक्रिया करने के साथ सम्यक्रिया नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है, यथा-सम्यक्रिया अथवा मिथ्याक्रिया / ॥तिर्यक्योनिक अधिकार का द्वितीय उद्देशक समाप्त / / विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में सम्यकक्रिया और मिथ्याक्रिया एक साथ एक जीव नहीं कर सकता, इस विषय को अन्यतीथिकों की मान्यता का पूर्वपक्ष के रूप में कथन करके उसका खण्डन किया गया है। अन्यतीथिक कहते हैं, विस्तार से व्यक्त करते हैं, अपनी बात दूसरों को समझाते हैं और निश्चित रूप से निरूपण करते हैं कि 'एक जीव एक समय में एक साथ सम्यक्रिया भी करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org