________________ 368] [जीवाजीवाभिगमसूत्र रजतमय पाच्छादन हैं / बाहुल्य से अंकरत्नमय, कनकमय कूट तथा स्वर्णमय स्तूपिका (लघु शिखर) वाला वह विजयद्वार है / उस द्वार की सफेदी शंखतल, विमल--निर्मल जमे हुए दही, गाय के दूध, फेन और चांदी के समुदाय के समान है, तिलकरत्नों और अर्धचन्द्रों से वह नानारूप वाला है, की मणियों की माला से वह अलंकृत है. अन्दर और बाहर से कोमल-मृद् पुद्गलस्कंधों से बना हसा है, तपनीय (स्वर्ण) की रेत का जिसमें प्रस्तर-प्रस्तार है। ऐसा वह विजयद्वार सुखद और शुभस्पर्श वाला, सश्रीक रूप वाला, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है / 129. (2) विजयस्स णं दारस्स उभओ पासि दुहनो णिसोहियाए दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं चंदणकलसा वरकमलपट्टाणा सुरमिवरवारिपडिपुण्णा चंवणकयचच्चागा, आबद्धकंठेगुणा पउमुष्पलपिहाणा सन्दरयणामया अच्छा सहा जाव पडिरूवा मया महया महिवकुभ समाणा पण्णत्ता समणाउसो! विजयस्स णं वारस्स उभो पासि बुहओ णिसीहियाए दो दो नागवंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसितहेमजालगववखजालखिखिणिघंटाजालपरिक्खित्ता, प्रमुग्गया अभिनिसिट्टा तिरियं सुसंपग्गहिता अहे पण्णगद्धरूवा, पण्णगद्धसंठाणसंठिया सन्वरयणामया अच्छा भाव पडिरूवा महया महया गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! तेसु णं णागदंतएसु बहवे किण्हसुत्तबद्धवग्धारियमल्लदामकलावा जाव सुक्किलसुत्तबद्धवग्धारियमल्लदामकलावा। ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपतरकमंडिया गाणामणिरयणविविहहारद्धहारोसोभियसमुदया जाव सिरीए अतीव मतीव उवसोमेमाणा उवसोमेमाणा चिठ्ठति / तेसि णं णागदंताणं उरि अण्णाओ वो दो नागदंतपरिधाडीओ पण्णताओ। ते णं नागदंतगा मुत्ताजालंतरूसिया तहेव जाव समणाउसो ! तेसु णं नागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता। तेस णं रययामएस सिक्कएस बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं अवघडीओ कालागुरुपवरकुदरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुयाभिरामाओ सुगंधवरगंधगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णणं घाणमणणिग्वइकरेणं गंघेणं तप्पएसे सव्वओ समंता आपूरेमाणीमो श्रापूरेमाणीओ अईव अईव सिरोए उषसोमेमाणा उवसोमेमाणा चिट्ठति / [129] (2) उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नषेधिकाएं हैं-बैठने के स्थान हैं (एक-एक दोनों तरफ हैं)। उन दो नषेधिकानों में दो-दो चन्दन के कलशों की पंक्तियां कही गई हैं। वे चन्दन के कलश श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं, सुगन्धित और श्रेष्ठ जल से भरे हुए हैं, उन पर चन्दन का लेप किया हुआ है, उनके कंठों में मोली (लच्छा) बंधी हुई है, पद्मकमलों का उन पर ढक्कन है, वे सर्वरत्नों के बने हुए हैं, स्वच्छ हैं, श्लक्ष्ण (मृदु पुद्गलों से निर्मित) हैं यावत् बहुत सुन्दर हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे कलश बड़े-बड़े महेन्द्रकुम्भ (महाकलश) के समान हैं। उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नषेधिकाओं में दो-दो नागदन्तों (खूटियों) की पंक्तियाँ हैं / वे नागदन्त मुक्ताजालों के अन्दर लटकती हुई स्वर्ण की मालाओं और गवाक्ष की प्राकृति की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org