________________ 420] [जीवाजीवाभिगमसूत्र देवानुप्रियो ! विजया राजधानी के शृगाटकों [त्रिकोणस्थानों] त्रिकों [जहाँ तीन रास्ते मिलते हैं। चतुष्कों [जहाँ चार रास्ते मिलते हैं] चत्वरों [बहुत से रास्ते जहाँ मिलते हैं] चतुर्मुखों [जहाँ से चारों दिशाओं में रास्ते जाते हैं] महापथों [राजपथों और सामान्य पथों में, प्रासादों में, प्राकारों में, अट्टालिकाओं में, चर्याओं [नगर और प्राकार के बीच आठ हाथ प्रमाण चौड़े अन्तराल मार्ग] में, द्वारों में, गोपुरों [प्राकार के द्वारों में, तोरणों में, बावड़ियों में, पुष्करिणीओं में, यावत् सरोवरों की पंक्तियों में, पारामों में [लतागृहों में], उद्यानों में, काननों [नगर के समीप के वनों] में, वनों में [नगर से दूर जंगलों में], वनखण्डों [अनेक जाति के वृक्षसमूहों में, वनराजियों [एकजातीय उत्तम वृक्षसमूहों में पूजा अर्चना करो और यह कार्य सम्पन्न कर मुझे मेरी आज्ञा सौंपो अर्थात् कार्यसमाप्ति की सूचना दो।' तब वे आभियोगिकदेव विजयदेव द्वारा ऐसा कहे जाने पर हृष्ट-तुष्ट हुए और उसकी प्राज्ञा को स्वीकार कर विजया राजधानी के शृगाटकों में यावत् वनखण्डों में पूजा-अर्चना करके विजयदेव के पास आकर कार्य सम्पन्न करने की सूचना देते हैं / ___ तब वह विजयदेव उन आभियोगिक देवों से यह बात सुनकर हृष्ट-तुष्ट और आनन्दित हुआ यावत् उसका हृदय विकसित हुआ / तदनन्तर वह नन्दापुष्करिणी की ओर जाता है और पूर्व के तोरण से उसमें प्रवेश करता है यावत् हाथ-पांव धोकर, आचमन करके स्वच्छ और परम शुचिभूत होकर नंदापुष्करिणी से बाहर आता है और सुधर्मा सभा की ओर जाने का संकल्प करता है। तब वह विजयदेव चार हजार सामानिक देवों के साथ यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के साथ सर्वऋद्धिपूर्वक यावत् वाद्यों की ध्वनि के बीच सुधर्मा सभा की ओर पाता है और सुधर्मा सभा के पूर्वदिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है तथा जहाँ मणिपीठिका है वहाँ जाकर श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठता है / 143. तए णं तस्स विजयस्स वेवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरच्छिमेणं पत्तेयं पत्तेयं पुष्वणस्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति / तए णं तस्स विजयस्स वेवस्स चत्तारि अग्गर्माहसीओ पुरथिमेणं पत्तेयं पत्तेयं पुठवणत्थेसु भद्दासणेसु गिसोयंति / तए णं तस्स विजयस्स देवस्स दाहिणपुरस्थिमेणं अभितरियाए परिसाए अटु देवसाहस्सीओ पत्तेयं पत्तेयं जाव णिसीयंत्ति / एवं दक्षिणेणं मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ जाव णिसीयंति / दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पत्तेयं पत्तेयं जाव णिसीदंति / तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पच्चस्थिमेणं सत्त अणियाहिवई पत्तेयं पत्तेयं जाव णिसीयंत्ति / तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पुरस्थिमेणं दाहिणेणं पच्चस्थिमेणं उत्तरेणं सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ पत्तेयं पत्तेयं पुरवणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति; तं जहा–पुरस्थिमेण चत्तारि साहस्सीमो जाव उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ। ते णं आयरक्खा सन्नद्धबद्धवम्मियकवया, उप्पीलियसरासणपट्रिया पिणद्धगेवेज्जविमलवरचिघपट्टा, गहियाउहपहरणा तिणयाई तिसंधीणि वइरामया कोडीणि धणई अहिगिज्य परियाइयकंडकलावा णोलपाणिणो पीयपाणिणो रत्तपाणिणो चावपाणिणो चारुपाणिणो चम्मपाणिणो खग्गपाणिणो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org