Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : जंबूद्वीप क्या कहलाता है ? ] पुष्करिणियां हैं, उनके नाम हैं श्रीकान्ता, श्रीमहिता, श्रीचंद्रा और श्रीनिलया / ' वही प्रमाण और प्रासादावतंसक तथा उसका प्रमाण भी वही है। 152. [3] जंबूए णं सुदंसणाए पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले बारस जोयणाई विक्खंभेणं मज्झे अट्ठ जोयणाई (आयाम) विक्खंभेणं उरि चत्तारि जोयणाई (आयाम) विक्खंभेणं मूले साइरेगाइं सत्ततीसं जोयणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं पणुवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं उरि साइरेगाइं बारसजोयणाई परिक्खेवेणं मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे / से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते; दोण्हवि वण्णओ। तस्स णं कूडस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंतिः / तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्सदेसभाए एग सिद्धायतणं कोसप्पमाणं सव्वा सिद्धायतणवत्तवया / जंबूए णं सुदंसणाए पुरथिमस्स भवणस्स दाहिणेणं दाहिणपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णते तं चेव पमाणं सिद्धायतणं य / जंबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं दाहिणपुरथिमस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं एगे महं कड़े पण्णत्ते / दाहिणस्स भवणस्स परओ दाहिण पच्चस्थिमिल्लस्स पासायवडिसगस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते / जंबूओ पच्चथिमिल्लस्स भवणस्स दाहिणणं दाहिणपच्चथिमिल्लस्स पासायडिसगस्स उत्तरेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते; तं चेव पमाणं सिद्धायतणं य। जंबूए पच्चत्थिमभवणउत्तरेणं उत्तरपच्चथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणणं एत्थ गं एगे महं कूडे पण्णत्ते तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च / जंबूए उत्तरस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं एत्थ णं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव। जंबूए उत्तरभवणस्स पुरथिमेणं उत्तरपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते तं चेव पमाणं तहेव सिद्धायतणं / 152 [3] जम्बू-सुदर्शना के पूर्वदिशा के भवन के उत्तर में और उत्तरपूर्व के प्रासादावतंसक के दक्षिण में एक विशाल कूट कहा गया है जो आठ योजन ऊंचा, मूल में बारह योजन चौड़ा, मध्य में पाठ योजन चौड़ा ऊपर चार योजन चौड़ा, मूल में कुछ अधिक सैंतीस योजन की परिधि वाला, मध्य में कुछ अधिक पच्चीस योजन की परिधि वाला और ऊपर कुछ अधिक बारह योजन की परिधि वाला—मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतला, गोपुच्छ आकार से संस्थित है, सर्वात्मना जाम्बूनद स्वर्णमय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है। वह कूट एक पद्मवरवेदिका 1. वृत्ति के अनुसार इनके नामों का क्रम इस प्रकार है श्रीकान्ता, श्रीचन्द्रा श्रीनिलया और श्रीमहिता / उक्तं चपउमा पउसप्पभा चेव कुमुया कुमुयप्पभा / उप्पल गुम्मा नलिणा उप्पला उप्पलुज्जला // 1 // भिंगा भिगनिभा चेव अंजण्ण कज्जलप्पभा। सिरिकता सिरिचंदा सिरिनिलया सिरिमहिया / / 2 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org