________________ 440] [जीवाजीवाभिगमसूत्र और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है। पद्मवरवेदिका और वनखंड--दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। उस कूट के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है आदि पूर्ववत् वर्णन करना चाहिए यावत् वहाँ बहुत से वानव्यन्तर देव और देवियां उठती-बैठती हैं आदि / उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के मध्य में एक सिद्धायतन कहा गया है जो एक कोस प्रमाण वाला है आदि सब सिद्धायतन की वक्तव्यता पूर्ववत् कहनी चाहिए। उस जम्बू-सुदर्शना के पूर्वदिशा के भवन से दक्षिण में और दक्षिण-पूर्व के प्रासादावतंसक के उत्तर में एक विशाल क्रूट है / उसका प्रमाण वही है यावत् वहाँ सिद्धायतन है। उस जम्बू-सुदर्शना के दक्षिण दिशा के भवन के पूर्व में और दक्षिण-पूर्व के प्रासादावतंसक के पश्चिम में एक विशाल कूट है / इसी तरह दाक्षिणात्य भवन के पश्चिम में और दक्षिण-पश्चिम प्रासादावतंसक के पूर्व में एक विशाल कूट है। __ उस जम्बू-सुदर्शना के पश्चिमी भवन के दक्षिण में और दक्षिण-पश्चिम के प्रासादावतंसक के उत्तर में एक विशाल कूट है। उसका प्रमाण वही है यावत् वहाँ सिद्धायतन है। उस जम्बू-सुदर्शना के पश्चिमी भवन के उत्तर में और उत्तर-पश्चिम के प्रासादावतंसक के दक्षिण में एक विशाल कूट है / वही प्रमाण है यावत् वहाँ सिद्धायतन है। उस जम्बू-सुदर्शना के उत्तर दिशा के भवन के पश्चिम में और उत्तर-पश्चिम के प्रासादावतंसक के पूर्व में एक विशाल कूट है आदि वर्णन करना चाहिए यावत् वहाँ सिद्धायतन है। . उस जम्बू-सुदर्शना के उत्तर दिशा के भवन के पूर्व में और उत्तरपूर्व के प्रासादावतंसक के पश्चिम में एक महान् कूट कहा गया है / उसका वही प्रमाण है यावत् वहाँ सिद्धायतन है / 152. (4) जंबू णं सुदंसणा अर्णोहिं बहूहिं तिलएहि लउहि जाव रायरक्खेहिं हिंगुरुलेहि जाव सव्यओ समंता संपरिक्खित्ता / / जंबूए णं सुदंसणाए उरि बहवे अट्ठमंगलगा पण्णता तंजहा-सोत्थिय सिरिवच्छ० किण्हा चामरज्झया जाव छत्ताइछत्ता। जंबूए णं सुदंसणाए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-- सुदंसणा अमोहा य सुप्पबुद्धा जसोधरा। विदेह जंबू सोमणसा णियया णिच्चमंडिया // 1 // सुभद्दा य विसाला य सुजाया सुमणीवि य।। सुदंसणाए जंबूए नामधेज्जा दुवालस // 2 // से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंबू सुदंसणा जंबू सुवंसणा? गोयमा ! जंबूए णं सुदंसणाए जंबूदीवाई अणाढिए णामं देवे महिड्डिए जाव पलिओवमदिईए परिवसइ / से णं तत्य चउण्हं सामाणिसाहस्सोणं जाव जंबूवोवस्स जंबूए सुदंसणाए अणाढियाए य रायहाणीए जाव विहरह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org