________________ 438] [जीवाजोवाभिगमसूत्र ___ जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरपुरत्थिमे पढम वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णताओ, तं जहा–सिरिकता सिरिमहिया सिरिचंदा चेक तह य सिरिणिलया। तं चेव पमाणं तहेव पासायडिसओ। [152] [2] यह सुदर्शना जम्बू मूल में बारह पद्मवरवेदिकाओं से चारों ओर घिरी हुई है / वे पद्मवरवेदिकाएँ अाधा योजन ऊँची, पांच सौ धनुष चौड़ी हैं / यहाँ पद्मवरवेदिका का वर्णनक कहना चाहिए। यह जम्बूसुदर्शना एक सौ आठ अन्य उससे आधी ऊँचाई वाली जंबुओं से चारों ओर घिरी हुई है। वे जम्बू चार योजन ऊँची, एक कोस जमीन में गहरी हैं, एक योजन का उनका स्कन्ध, एक योजन का विष्कंभ है, तीन योजन तक फैली हुई शाखाएँ हैं / उनका मध्यभाग में चार योजन का विष्कंभ है और चार योजन से अधिक उनकी समग्र ऊँचाई है / वज्रमय उनके मूल हैं, आदि चैत्यवृक्ष का वर्णनक यहाँ कहना चाहिए। जम्बूसुदर्शना के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में और उत्तरपूर्व में अनाहत देव के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार जम्बू हैं / जम्बू सुदर्शना के पूर्व में अनाहत देव की चार अग्नमहिषियों के चार जम्बू हैं, इस प्रकार समस्त परिवार यावत् आत्मरक्षकों के जंबुओं का कथन करना चाहिए। जंबू-सुदर्शना सौ-सौ योजन के तीन वनखण्डों से चारों ओर घिरी हुई हैं, यथा प्रथम वनखंड, द्वितीय वनखंड और तृतीय वनखण्ड / जंबू-सुदर्शना के पूर्वीय प्रथम वनखण्ड में पचास योजन आगे जाने पर एक विशाल भवन है; पूर्व के भवन के समान ही शयनीय पर्यन्त सब वर्णन जान लेना चाहिए। इसी प्रकार दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में भी भवन समझने चाहिए। जम्बू-सुदर्शना के उत्तरपूर्व के प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदापुष्करिणियां कही गई हैं, उनके नाम हैं—पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा और कुमुदप्रभा / वे नंदापुष्करिणियां एक कोस लम्बी, आधा कोस चौड़ी, पांच सौ धनुष गहरी हैं / वे स्वच्छ, श्लक्ष्ण, धृष्ट, मृष्ट, निष्पंक, नीरजस्क हैं यावत प्रतिरूप हैं, इत्यादि वर्णनक तोरण पर्यन्त कहना चाहिए। उन नंदापुष्करिणियों के बहमध्यदेशभाग में प्रासादावतंसक कहा गया है जो एक कोस ऊँचा है, आधा कोस का चौड़ा है, इत्यादि वही वर्णनक सपरिवार सिंहासन तक कहना चाहिए। इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व में भी पचास योजन जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं, यथा-उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला, उत्पलोज्ज्वला / उनका प्रमाण, प्रासादावतंसक और उसका प्रमाण पूर्ववत् है / इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम में भी पचास योजन आगे जाने पर चार पुष्करिणियां हैं, यथाभृगा, भृ गिनिया, अंजना एवं कज्जलप्रभा / शेष सब पूर्ववत् / जम्बू-सुदर्शना के उत्तर-पूर्व में प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org