Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र 152. [1] जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसि चत्तारि साला पण्णत्ता, तंजहा--पुरस्थिमेणं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं / तस्थ णं जे से पुरथिमिल्ले साले एत्थ णं एगे महं भवणे पण्णत्ते, एग कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूर्ण कोसं उड्ढे उच्चत्तेणं अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे वण्णओ जाव भवणस्स दारं तं चेव पमाणं पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं अड्डाइज्जाइं धणुसयाई विक्खंभेणं जाव वणमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणिपेढिया पंचधणुसइया वेवसयाणिज्जं भाणियव्वं / तत्थ णं जे से दाहिणिल्ले साले एत्थ णं एगे महं पासायव.सए पण्णत्ते, कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं अग्भुग्गयमूसिय० अंतो बहुसम० उल्लोया। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए सीहासणं सपरिवार भाणियव्वं / तत्थ णं जे से पच्चत्थिमिल्ले साले एत्थ गं पासायव.सए पणत्ते तं चेव पमाणं सोहासणं सपरिवार भाणियव्वं / तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले साले एत्थ णं एगे महं पासायव.सए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं। तत्थ णं जे से उवरिमविडिमे एस्थ णं एगे महं सिद्धायतणे कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूर्ण कोस उड्ढं उच्चत्तेणं अणेगखंभसयसग्निविट्ठे वण्णओ। तिदिसि तओ दारा पंचधणुसया अड्डाइजधणुसयविक्खंभा मणिपेढिया पंचधणुसइया देवच्छंदओ पंचधणुसयाई आयामविक्खंभेणं साइरेगपंचधणुसयाइमुच्चत्तेणं / तत्थ णं देवच्छंदए अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहपमाणाणं, एवं सव्वा सिद्धायतण वत्तव्यया भाणियव्वा जाव धूवकडच्छुया उत्तिमागारा सोलसविहेहि रयणेहिं उबेए चेव। [152] [1] सुदर्शना अपर नाम जम्बू की चारों दिशाओं में चार-चार शाखाएँ कही गई हैं, यथा-पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में / उनमें से पूर्व की शाखा पर एक विशाल भवन कहा गया है जो एक कोस लम्बा, प्राधा कोस चौड़ा, देशोन एक कोस ऊँचा है, अनेक सैकड़ों खंभों पर आधारित है आदि वर्णन भवन के द्वार तक करना चाहिए। वे द्वार पाँच सौ धनुष के ऊँचे, ढाई सौ धनुष के चौड़े यावत् वनमालाओं, भूमिभागों, ऊपरीछतों और पांच सौ धनुष की मणिपीठिका और देवशयनीय का पूर्ववत् वर्णन करना चाहिए। उस जम्बू की दक्षिणी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है, जो एक कोस ऊँचा, प्राधा कोस लम्बा-चौड़ा है, आकाश को छूता हुआ और उन्नत है। उसमें बहुसमरमणीय भूमिभाग है, भीतरी छतें चित्रित हैं आदि वर्णन जानना चाहिए। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के मध्य में सिंहासन हैं, वह सिंहासन सपरिवार है अर्थात् उसके आसपास अन्य सामानिक देवों आदि के भद्रासन हैं। यह सब वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए। उस जम्बू की पश्चिमी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है। उसका वही प्रमाण है और सब वक्तव्यता पूर्ववत् कहनी चाहिए यावत् वहाँ सपरिवार सिंहासन कहा गया है। उस जम्बू की उत्तरी शाखा पर भी एक विशाल प्रासादावतंसक है आदि सब कथन-प्रमाण, सपरिवार सिंहासन आदि पूर्ववत् जानना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org