________________ 434] [जीवाजीवाभिगमसूत्र राजधानियां इन कांचनक पर्वतों से उत्तर में असंख्यात द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में कही गई हैं आदि वर्णन विजया राजधानी की तरह कहना चाहिए। हे भगवन् उत्तरकुरु क्षेत्र का उत्तरकुरुद्रह कहाँ कहा गया है ? गौतम् ! नीलवंतद्रह के दक्षिण में आठ सौ चौतीस योजन और योजन दूर उत्तरकुरुद्रह है--आदि सब वर्णन नीलवंतद्रह की तरह जानना चाहिए। सब द्रहों में उसी-उसी नाम के देव हैं / सब द्रहों के पूर्व में और पश्चिम में दस-दस कांचनक पर्वत हैं जिनका प्रमाण समान है। इनकी राजधानियां उत्तर की ओर असंख्य द्वीप-समुद्र पार करने पर अन्य जम्बूद्वीप में हैं, उनका वर्णन विजया राजधानी की तरह जानना चाहिए / ___ इसी प्रकार चन्द्रद्रह, एरावतद्रह और मालवंतद्रह के विषय में भी यही सब वक्तव्यता कहनी चाहिए। जंबूवृक्ष वक्तव्यता 151. कहिं णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जंबु-सुदंसणाए जंबुपेढे नाम पेढे पण्णते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरपुरच्छिमेणं नीलवंतस्स वासहरपब्वयस्स दाहिणणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चस्थिमेणं, गंधमादणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं सीताए महागईए पुरथिमिल्ले कूले एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नाम पेढे पंचजोयणसयाई आयामविक्खं भेणं पण्णरस एक्कासीए जोयणसए किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं बहुमज्झदेसभागे बारस जोयणाई बाहल्लेणं तयाणंतरं च णं मायाए मायाए पएस परिहाणीए सव्वेसु चरमंतेसु दो कोसे बाहल्लेणं पण्णत्ते, सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे। __ से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ दोहवि / तस्स णं जंबूपेढस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता तं चेव जाव तोरणा जाव छत्ताइछत्ता / तस्स णं जंबूपेढस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणमए आलिंगपुक्खरे इ वा जाव मणीणं फासो। तस्स गं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता अट्ट जोयणाई आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं मणिमई अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा / तोसे णं मणिपेढियाए उरि एत्य णं महं जंबूसुदंसणा पण्णत्ता अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं अद्धजोयणं उन्वेहेणं दो जोयणाई खंधे अट्ठजोयणाई विक्खंभेणं छ जोयणाई विडिमा, बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणाई विक्खंभेणं साइरेगाई अट्ठजोयणाइं सव्वग्गेण पण्णत्ता; वइरामयमूला रययसुपइट्ठियविडिमा एवं चेइयरुक्खवण्णओ सम्वो जाव रिट्ठामयविउलकंदा, वेरुलियरुइरक्खंधा सुजायवरजायरूवपढमगविसालसाला नाणामणिरयणविविहसाहप्पसाहवेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तविटा जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवंकुरधरा विचित्तमणिरयणसुरहिकुसुमा फलभारन. मियसाला सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया अहियं मणोनिन्वुइकरा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org