________________ [ जीवाजीवाभिगमसूत्र लवणस्स गं भंते ! पएसा धातइखंडं दीवं पुट्ठा ? तहेव जहा जम्बूवीवे धायइखंडे वि सो चेव गमो। लवणे णं भंते / समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता सो चेव विही, एवं धायइखंडे वि। से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ-लवणसमुद्दे लवणसमुद्दे ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे उदगे आविले रइले लोणे लिदे खारए कडुए अध्येज्जे बहूणं दुपय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सिरीसवाणं णण्णस्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं / सोथिए एत्थ लवणाहिवई देवे महिड्डिए पलिओवमट्टिईए / से णं तत्व सामाणिय जाव लवणसमुद्दस्स सुत्थियाए रायहाणिए अण्णेसि जाव विहरइ / से एएठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ लवणे णं समुद्दे लवणे णं समुद्दे / अदुत्तरं च गं गोयमा ! लवणसमुद्दे सासए जाव णिच्चे। 154. गोल और वलय की तरह गोलाकार में संस्थित लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए अवस्थित है। हे भगवन् ! लवणसमुद्र समचक्रवाल-संस्थान से संस्थित है या विषमचक्रवाल-संस्थान से संस्थित है? गौतम! लवणसमुद्र समचक्रवाल-संस्थान से संस्थित है, विषमचक्रवाल-संस्थान से संस्थित नहीं है। भगवन् ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कंभ कितना है और उसकी परिधि कितनी है ? गौतम ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कंभ दो लाख योजन का है और उसकी परिधि पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनतालीस योजन से कुछ अधिक है।' वह लवणसमुद्र एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से सब अोर से परिवेष्टित है। दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। वह पयवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पांच सौ धनुष प्रमाण चौड़ी है। लवणसमुद्र के समान ही उसकी परिधि है। शेष वर्णन जम्बूद्वीप की पद्मवरवेदिका के समान जानना चाहिए। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन का है, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये, यावत् वहां बहुत से वाणव्यन्तर देव-देवियां अपने पुण्यकर्म के फल को भोगते हुए विचरते हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र के कितने द्वार हैं ? गौतम ! लवणसमुद्र के चार द्वार हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित / हे भगवन् ! लवणसमुद्र का विजयद्वार कहां है ? गौतम ! लवणसमुद्र के पूर्वीय पर्यन्त में और पूर्वार्ध धातकीखण्ड के पश्चिम में शीतोदा महानदी के ऊपर लवणसमुद्र का विजय नामक द्वार है / वह पाठ योजन ऊंचा और चार योजन चौड़ा है, आदि वह सब कथन करना चाहिए जो जम्बूद्वीप के विजयद्वार के लिए कहा गया है। इस विजय देव की राजधानी पूर्व में असंख्य द्वीप, समुद्र लांघने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है। हे भगवन् ! लवणसमुद्र में वैजयन्त नामक द्वार कहां है ? गौतम ! लवणसमुद्र के दाक्षिणात्य पर्यन्त में धातकीखण्ड द्वीप के दक्षिणार्ध भाग के उत्तर में वैजयन्त नामक द्वार है। शेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी प्रकार जयन्तद्वार के विषय में 1. वृत्ति में 'पंचदश योजनशतसहस्राणि एकाशीति सहस्राणि शतमेकोनचत्वारिंशं च किंचिद्विशेषोन परिक्षेपेण' ऐसा उल्लेख है (कुछ कम है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org