________________ तृतीय प्रतिपत्ति H जम्बूवृक्ष वक्तव्यता [435 [151] हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र में सुदर्शना अपर नाम जम्बू का जम्बूपीठ नाम का पीठ कहाँ कहा गया है। हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तरपूर्व [ईशानकोण] में, नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीता महानदी के पूर्वीय किनारे पर उत्तरकुरु क्षेत्र का जम्बूपीठ नामक पीठ है जो पांच सौ योजन लम्बा-चौड़ा है, पन्द्रह सौ इक्यासी योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह मध्यभाग में बारह योजन की वाला है, उसके बाद क्रमशः प्रदेशहानि होने से थोड़ा थोड़ा कम होता होता सब चरमान्तों में दो कोस का मोटा रह जाता है / वह सर्व जम्बूनद [स्वर्ण] मय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है। वह जम्बूपीठ एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णनक कहना चाहिए / उस जम्बूपीठ की चारों दिशाओं में चार त्रिसोपानप्रतिरूपक कहे गये हैं आदि सब वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए / तोरणों का यावत् छत्रातिछत्रों का कथन करना चाहिए। __ उस जम्बूपीठ के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है जो आलिंगपुष्कर [मुरज-मृदंग] के मढ़े हुए चमड़े के समान समतल है, आदि कथन मणियों के स्पर्श पर्यन्त पूर्ववत् जानना चाहिए। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग में एक विशाल मणिपीठिका कही गई है जो आठ योजन की लम्बी-चौड़ी और चार योजन की मोटी है, मणिमय है, स्वच्छ है, श्लक्ष्ण है यावत् प्रतिरूप है। उस मणिपीठिका के ऊपर विशाल जम्बू सूदर्शना सूिदर्शना अपर नाम जम्बू] है--जम्बूवक्ष है। वह जम्बूवृक्ष पाठ योजन ऊँचा है, प्राधा योजन जमीन में है , दो योजन का उसका स्कंध [धड़] है, आठ योजन उसकी चौड़ाई है, छह योजन तक उसकी शाखाएँ फैली हुई हैं, मध्यभाग में आठ योजन चौड़ा है, [उद्वेध और बाहर की ऊँचाई] मिलाकर पाठ योजन से अधिक [साढे आठ योजन] ऊँचा है। इसके मूल वज्ररत्न के हैं, इसकी शाखाएँ रजत चांदी] की हैं और ऊँची निकली हुई हैं, इस प्रकार चैत्यवृक्ष का वर्णनक कहना चाहिए यावत् उसके कन्द विपुल और रिष्ठरत्नों के हैं, उसके स्कन्ध रुचिर [सुन्दर और वैडूर्य रत्न के हैं, इसकी मूलभूत शाखाएँ सुन्दर-श्रेष्ठ चांदी की हैं, अनेक प्रकार के रत्नों और मणियों से इसकी शाखा-प्रशाखाएँ बनी हुई हैं, वैडूर्यरत्नों के पत्ते हैं और तपनीय स्वर्ण के इसके पत्रवृन्त वीट) हैं, इसके प्रवाल और पल्लवांकुर जाम्बूनद नामक स्वर्ण के हैं, लाल हैं, सुकोमल हैं और मृदुस्पर्श वाले हैं / ' नानाप्रकार के मणिरत्नों के फूल हैं / वे फूल सुगन्धित हैं / उसकी शाखाएँ फल के भार से नमी हुई हैं / वह जम्बूवृक्ष सुन्दर छाया वाला, सुन्दर कान्ति वाला, शोभा वाला, उद्योत वाला और मन को अत्यन्त तृप्ति देने वाला है। वह प्रासादीय है, दर्शनीय है, अभिरूप है और प्रतिरूप है। 1. वृत्तिकार ने मतान्तर का उल्लेख करते हुए लिखा है-'अपरे सौवणिक्यो मूलशाखाः प्रशाखा रजतमय्यः इत्युचुः / ' अन्ये तु जम्बूनदमया अग्रप्रवाला अंकुरापरपर्याया राजता इत्याहु / इस विषयक संग्रहणी गाथाएं इस प्रकार हैं-- मूला वइरमया से कंदो खंधो य रिट्ठवेरुलियो / सोवणियसाहप्पसाह तह जायरूवा य // 1 // विडिमा रयय वेरुलिय पत्त तत्रणिज्ज पत्तविटा य / पल्लव अग्गपवाला जम्बूणय रायया तीसे // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org