________________ 424] [जीवाजीवाभिगमसूत्र योजन प्रमाण घटाने पर परिधि का प्रमाण 316209 योजन तीन कोस एक सौ आठ धनुष और साढे तेरह अंगुल से अधिक शेष रहता है / इसके चार भाग करने पर 79052 योजन 1 कोस 1532 धनुष 3 अंगुल और 3 यव आता है। इतना एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर समझना चाहिए / इसी बात को निम्न दो गाथाओं में प्रकट किया गया है कुडुदुवारपमाणं अट्ठारस जोयणाई परिहीए। सो हि य चउहिं विभत्तं इणमो दारंतरं होइ / / 1 / / अउन्नसीइं सहस्सा बावण्णा अद्धजोयणं नणं / दारस्स य दारस्स य अंतरमेयं विणिद्दिट्ठ // 2 // 146. जंबद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समुदं पुट्ठा ? हंता, पुट्ठा। ते णं भंते ! कि जंबुद्दीवे बोवे लवणसमुद्दे वा ? गोयमा ! जंबुद्दोवे दोवे, नो खलु ते लवणसमुद्दे। लवणस्स णं भंते ! समुदस्स पएसा जंबुद्दीवं दोवं पुट्ठा ? हंता, पुट्ठा। ते णं भंते ! कि लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे वा? गोयमा! लवणे णं ते समुद्दे, नो खलु ते जंबुद्दीवे दोबे // जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जीवा उदाइत्ता उद्दाइत्ता लवणसमुद्दे पच्चायति ? गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायति / लवणे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता जंबद्दीवे वोवे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायति / [146] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं क्या ? हाँ, गौतम ! स्पृष्ट हैं। भगवन् ! वे स्पष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप? गौतम ! वे जम्बूद्वीप रूप हैं, लवणसमुद्र रूप नहीं हैं / हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप को छुए हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! छुए हुए हैं। हे भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं या जम्बूद्वीप रूप ? गौतम ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं, जम्बूद्वीप रूप नहीं / हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में मर कर जीव लवणसमुद्र में पैदा होते हैं क्या ? गौतम ! कोई उत्पन्न होते हैं, कोई उत्पन्न नहीं होते हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र में मर कर जीव जम्बूद्वीप में पैदा होते हैं क्या ? गौतम ! कोई पैदा होते हैं, कोई पैदा नहीं होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org