________________ तृतीय प्रतिपत्ति : जंबूद्वीप क्यों कहलाता है ?] [425 विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में प्रश्न किया गया है कि जम्बूद्वीप के लवणसमुद्र से स्पृष्ट-छुए हुए प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप ? इसका आशय यह है कि स्वसीमागत जो चरम प्रदेश हैं वे क्या जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप? क्योंकि जो जिससे स्पृष्ट होता है वह किसी अपेक्षा से उस रूप में व्यपदेश वाला हो जाता है, जैसे सौराष्ट्र से संक्रान्त मगध देश सौराष्ट्र कहलाता है। किसी अपेक्षा से वैसा व्यपदेश नहीं भी होता है, जैसे तर्जनी अंगुलि से संस्पृष्ट ज्येष्ठा अंगुलि तर्जनी नहीं कही जाती है। दोनों प्रकार की स्थितियाँ होने से यहाँ उक्त प्रकार का प्रश्न किया गया है। इसके उत्तर में प्रभु ने फरमाया कि वे जम्बूद्वीप के चरम स्पृष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप के ही हैं, लवणसमुद्र के नहीं / यही बात लवणसमुद्र के प्रदेशों के विषय में भी समझनी चाहिए। जम्बूद्वीप से मर कर लवणसमुद्र में पैदा होने और लवणसमुद्र से मर कर जम्बूद्वीप में पैदा होने संबंधी प्रश्नों के विषय में कहा गया है कि कोई-कोई जीव वहाँ पैदा होते हैं और कोई-कोई पैदा नहीं होते, क्योंकि जीव अपने किये हुए विविध कर्मों के कारण विविध गतियों में जाते हैं। जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? 147. से केणछैणं भंते ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं णीलवंतस्स दाहिणणं मालवंतस्स वरखारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, गंधमायणस्स वखारपब्वयस्स पुरस्थिमेण, एत्थ णं उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णता, पाईणपडीणायता उदीणदाहिणविस्थिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया एक्कारसजोयणसहस्साई अट्टबायाले जोयणसए दोण्णि य एकोणवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं / तीसे जीवा पाईणपडीणायता दुहओ बक्खारपव्ययं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडोए पुरथिमिल्लं बक्खारपम्वयं पुट्ठा, पच्चस्थिमिल्लेणं कोडीए पच्चथिमिल्लं वक्खारपवयं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साई आयामेणं, तोसे धणपढें दाहिणणं सर्ट्सि जोयणसहस्साई चत्तारि य अट्ठारसुत्तरे जोयणसए दुवालस य एगूण वीसइ भाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ते। उत्सरकुराए गं भंते कुराए केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे मूमिभागे पण्णत्ते। से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव एक्कोरयदीववत्तवया जाव देवलोगपरिग्गहा गं ते मण्यगणा पण्णत्ता समणाउसो! णवरि इमं णाणतं छघणुसहस्समूसिया दो छप्पन्ना पिटुकरंडसया अदुमभत्तस्स आहारट्ठे समुष्पज्जइ, तिणि पलिओवमाइं देसूणाई पलिओवमस्सासंखिज्जइ भागेणं ऊणगाई जहन्नेणं, तिन्नि पलिओवमाई उक्कोसेणं, एकूणपणराइंदियाइं अणुपालणा; सेसं जहा एगूरुयाणं / उत्तरकुराए णं कुराए छठिवहा मणस्सा अणुसज्जंति, तं जहा-१. पम्हगंधा, 2. मियगंधा, 3. अममा, 4. सहा, 5. तेयालीसे, 6. सणिचारी। [147] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में उत्तरकुरा नामक कुरा [क्षेत्र] है / वह पूर्व से पश्चिम तक लम्बा और उत्तर से दक्षिण तक चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org