________________ 378] [जीवाजीवाभिगमसूत्र 132. विजए णं दारे अनुसयं चक्कज्झयाणं अट्ठसयं मिगज्मयाणं अट्ठसयं गरुडज्मयाणं (अट्ठसयं विगायाणं) अट्ठसयं रुरुयज्झयाणं अट्ठसयं छत्तन्मयाणं अट्ठसयं पिच्छज्झयाणं अट्ठसयं सउणिज्मयाणं अदृसयं सीहायाणं अट्ठसयं उसभज्झयाणं अट्ठसयं सेयाणं घउविसाणाणं णागवरकेकणं एवामेष सपुम्वावरेणं विजयदारे य असीयं के उसहस्सं भवतीतिमक्खायं / विजये गं दारे णव भोमा पण्णता। तेसि गं मोमाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता जाव मणीणं फासो। तेसि णं मोमाणं उप्पि उल्लोया पउमलया जाव सामलताभत्तिचित्ता जाव सम्यतवणिज्जमया अच्छा जाय पडिरूवा। तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जे से पंचमे भोमे तस्स णं भोमस्स बहुमज्सदेसभाए एत्थ गं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते / सीहासणवण्णओ विजयसे जाव अंकुसे जाव वामा चिट्ठति / तस्स सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसहस्साणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णताओ / तस्स गं सीहासणस्स पुरच्छिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं अग्गहिसाणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणा पण्णता। तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरस्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स अम्भितरियाए परिसाए अट्टहं देवसाहस्सोणं अट्टण्हं भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ / तस्स णं सीहासणस्स दाहिणणं विजयस्स देवस्स मज्झिमाए परिसाए बसण्हं देवसाहस्सोणं दस भद्दासणसाहस्सोओ पण्णत्ताओ। तस्स णं सोहासणस्स दाहिणपच्चस्थिमेणं एस्थ गं विजयस्स देवस्स बाहिरियाए बारसण्हं देवसाहस्सीणं बारसभद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। तस्स णं सीहासणस्स पच्चस्थिमेणं एस्थ णं विजयस्स देवस्स सत्ताहं अणियाहिवईणं सत्त भद्दासणा पण्णत्ता / तस्स णं सोहासणस्स पुरस्थिमेणं दाहिणणं पच्चस्थिमेणं उत्तरेणं एत्य णं विजयस्स देवस्स सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-पुरस्थिमेणं चत्तारि साहस्सोओ एवं चउसुवि जाव उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीनो। अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं पत्तेयं भद्दासणा पण्णत्ता। 6132] उस विजयद्वार पर एक सौ आठ चक्र से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ पाठ मृग से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ गरुड से अंकित ध्वजाएँ, (एक सौ आठ वृक' (भेडिया) से अंकित ध्वजाएँ), एक सौ आठ रुरु (मृगविशेष) से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ पाठ छत्रांकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ पिच्छ से अंकित ध्वजाएं, एक सौ आठ शकुनि (पक्षी) से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ सिंह से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ पाठ वृषभ से अंकित ध्वजाएँ और एक सौ आठ सफेद चार दांत वाले हाथी से अंकित ध्वजाएँ-इस प्रकार आगे-पीछे सब मिलाकर एक हजार अस्सी ध्वजाएँ विजयद्वार पर कही गई हैं / (ऐसा मैंने और अन्य तीर्थंकरों ने कहा है / ) 1. वृत्ति में वृक से अंकित पाठ नहीं है / वहाँ रुरु से अंकित पाठ मान्य किया गण है। किन्हीं प्रतियों में 'रुरु' पाठ नहीं है। कहीं दोनों हैं / इन दोनों में से एक को स्वीकार करने से ही कुल संख्या 1080 होती है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org