________________ तृतीय प्रतिपत्ति : विजयदेव का उपपास और उसका अभिषेक] [409 वसान। कोई देव चार प्रकार के अभिनय करते हैं। वे चार प्रकार हैं--दार्टान्तिक, प्रतिश्रुतिक, सामान्यतोविनिपातिक और लोकमध्यावसान / कोई देव स्वयं को पीन (स्थूल) बना लेते हैं-फुला लेते हैं, कोई देव ताण्डवनृत्य करते हैं, कोई देव लास्यनृत्य करते हैं, कोई देव छु-छु करते हैं, कोई देव उक्त चारों क्रियाएँ करते हैं, कई देव प्रास्फोटन (भूमि पर पैर फटकारना) करते हैं, कई देव वल्गन (कदना) करते हैं, कई देव त्रिपदीछेदन (ताल ठोकना) करते हैं, कोई देव उक्त तीनों क्रियाएँ करते हैं, कोई देव घोड़े की तरह हिनहिनाते हैं, कोई हाथी की तरह गुड़गुड़ आवाज करते हैं, कोई रथ की आवाज की तरह आवाज निकालते हैं, कोई देव उक्त तीनों तरह की आवाजें निकालते हैं, कोई देव उछलते हैं, कोई देव विशेष रूप से उछलते हैं, कोई देव उत्कृष्टि अर्थात् छलांग लगाते हैं, कोई देव उक्त तीनों क्रियाएँ करते हैं, कोई देव सिंहनाद करते हैं, कोई देव भूमि पर पांव से आघात करते हैं, कोई देव भूमि पर हाथ से प्रहार करते हैं, कोई देव उक्त तीनों क्रियाएँ करते हैं। कोई देव हक्कार करते हैं, कोई देव वुक्कार करते हैं, कोई देव थक्कार करते हैं, कोई देव पूत्कार (फूफ) करते हैं, कोई देव नाम सुनाने लगते हैं, कोई देव उक्त सब क्रियाएँ करते हैं। कोई देव ऊपर उछलते हैं, कोई देव नीचे गिरते हैं, कोई देव तिरछे गिरते हैं, कोई देव ये तीनों क्रियाएँ करते हैं / कोई देब जलने लगते हैं, कोई ताप से तप्त होने लगते हैं, कोई खूब तपने लगते हैं, कोई देव जलते-तपते-विशेष तपने लगते हैं, कोई देव गर्जना करते हैं, कोई देव बिजलियां चमकाते हैं, कोई देव वर्षा करने लगते हैं, कोई देव गर्जना, बिजली चमकाना और बरसाना तीनों काम करते हैं, कोई देव देवों का सम्मेलन करते हैं, कोई देव देवों को हवा में नचाते हैं, कोई देव देवों में कहकहा मचाते हैं, कोई देव हु हु हु हु करते हुए हर्षोल्लास प्रकट करते हैं, कोई देव उक्त सभी क्रियाएं करते हैं, कोई देव देवोद्योत करते हैं, कोई देवविद्युत् का चमत्कार करते हैं, कोई देव चेलोत्क्षेप (वस्त्रों को हवा में फहराना) करते हैं। कोई देव उक्त सब क्रियाएँ करते हैं। किन्हीं देवों के हाथों में उत्पल कमल हैं यावत् किन्हीं के हाथों में सहस्रपत्र कमल हैं, किन्हीं के हाथों में घंटाएँ हैं, किन्हीं के हाथों में कलश हैं यावत् किन्हीं के हाथों में धूप के कडुच्छक हैं। इस प्रकार वे देव हृष्ट-तुष्ट हैं यावत् हर्ष के कारण उनके हृदय विकसित हो रहे हैं / वे उस विजयाराजधानी में चारों ओर इधर-उधर दौड़ रहे हैं--भाग रहे है। विवेचनः-प्रस्तुत सूत्र में कतिपय नाट्यविधियों, वाद्यविधियों, गेयों और अभिनयों का उल्लेख है। राजप्रश्नोयसूत्र में सूर्याभ देव के द्वारा भगवान् श्री महावीर स्वामी के सन्मुख बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों का प्रदर्शन करने का उल्लेख है / वे बत्तीस नाट्यविधियाँ इस प्रकार हैं 1. स्वस्तिकादि अष्टमंगलाकार अभिनयरूप प्रथम नाट्यविधि / 2. आवर्त प्रत्यावर्त यावत् पद्मलताभक्ति चित्राभिनयरूप द्वितीय नाट्यविधि / 3. ईहामृगवृषभतुरगनर यावत् पद्मलताभक्ति चित्रात्मक तृतीय नाट्यविधि / 4. एकताचक्र द्विधा चक्र यावत् अर्धचक्रवालाभिनय रूप। 5. चन्द्रावलिप्रविभक्ति सूर्यावलिप्रविभक्ति यावत् पुष्पावलिप्रविभक्ति रूप / 6. चन्द्रोद्गमप्रविभक्ति सूर्योद्गमप्रविभक्ति अभिनयरूप / 7. चन्द्रागमन-सूर्यागमनप्रविभक्ति अभिनयरूप / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org