________________ [जीवाजीवामियमसूत्र करेंति / अप्पेगइया देवा देवज्जोयं करेंति अप्पेगइया दवा विज्जुयारं करेंति अप्पेगइया देवा चेलमखेवं करति अप्पेगइया देवा वेधुज्जोयं विज्जुयारं चेलक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवा उप्पलहत्यगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया घंटाहत्थगया-कलसहत्यगया जाव धवकडच्छगया हद्वतद्वा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया विजयाए रायहाणीए सव्वमो समंता आधाति परिषावेति / [141] (5) तदनन्तर उस विजयदेव के महान् इन्द्राभिषेक के चलते हुए कोई देव दिव्य सुगन्धित जल की वर्षा इस ढंग से करते हैं जिससे न तो पानी अधिक होकर बहता है, न कीचड़ होता है अपितु विरल बूंदोंवाला छिड़काव होता है / जिससे रजकण और धूलि दब जाती है / कोई देव उस विजया राजधानी को निहतरज बाली, नष्ट रज वाली, भ्रष्ट रज वाली, प्रशान्त रज वाली, उपशान्त, रज वाली बनाते हैं। कोई देव उस विजया राजधानी को अन्दर और बाहर से जल का छिडकाव कर, सम्मान (झाड़-बुहार) कर, गोमयादि से लीपकर तथा उसकी गलियों और बाजारों को छिड़काव से शुद्ध कर साफ-सुथरा करने में लगे हुए हैं। कोई देव विजया राजधानी में मंच पर मंच बनाने में लगे हुए हैं। कोई देव अनेक प्रकार के रंगों से रंगी हुई एवं जयसूचक विजयवैजयन्ती नामक पताकाओं पर पताकाएँ लगाकर विजया राजधानी को सजाने में लगे हुए हैं, कोई देव विजया राजधानी को चूना आदि से पोतने में और चंदरवा आदि बांधने में तत्पर हैं। कोई देव गोशीर्ष चन्दन, सरस लाल चन्दन और चन्दन के चूरे के लेपों से अपने हाथों को लिप्त करके पांचों अंगुलियों के छापे लगा रहे हैं / कोई देव विजया राजधानी के घर-घर के दरवाजों पर चन्दन के कलश रख रहे हैं / कोई देव चन्दन घट और तोरणों से घर-घर के दरवाजे सजा रहे हैं, कोई देव ऊपर से नीचे तक लटकने वाली बड़ी बड़ी गोलाकार पुष्पमालाओं से उस राजधानी को सजा रहे हैं, कोई देव पांच वर्गों के श्रेष्ठ सुगन्धित पुष्पों के पुंजों से युक्त कर रहे हैं, कोई देव उस विजया राजधानी को काले अगुरु उत्तम कुन्दुरुक्क एवं लोभान जला जलाकर उससे उठती हुई सुगन्ध से उसे मघमघायमान कर रहे हैं अतएव वह राजधानी अत्यन्त सुगन्ध से अभिराम बनी हुई है और विशिष्ट गन्ध की बत्ती सी बन रही है। कोई देव स्वर्ण की वर्षा कर रहे हैं, कोई चांदी की वर्षा कर रहे हैं, कोई रत्न को कोई वज्र की वर्षा कर रहे हैं, कोई फूल बरसा रहे हैं, कोई मालाएँ बरसा रहे हैं, कोई सुगन्धित द्रव्य, कोई सुगन्धित चूर्ण, कोई वस्त्र और कोई आभरणों की वर्षा कर रहे है। कोई देव हिरण्य (चांदी) बांट रहे हैं, कोई स्वर्ण, कोई रत्न, कोई वज्र, कोई फूल, कोई माल्य, कोई चूर्ण, कोई गंध, कोई वस्त्र और कोई देव प्राभरण बांट रहे हैं / (परस्पर आदान-प्रदान कर रहे हैं / ) कोई देव द्रुत नामक नाट्यविधि का प्रदर्शन करते हैं, कोई देव विलम्बित नाट्यविधि का प्रदर्शन करते हैं, कोई देव द्रुतविलम्बित नामक नाट्यविधि का प्रदर्शन करते हैं, कोई देव अंचित नामक नाट्यविधि, कोई रिभित नाट्यविधि, कोई अंचित-रिभित नाट्यविधि, कोई प्रारभट नाट्यविधि, कोई भसोल नाट्यविधि, कोई प्रारभट-भसोल नाट्यविधि, कोई उत्पात-निपातप्रवृत्त, संकुचित-प्रसारित, रेक्करचित (गमनागमन) भ्रान्त-संभ्रान्त नामक नाट्यविधियां प्रशित करते हैं। कोई देव चार प्रकार के वादित्र बजाते हैं। वे चार प्रकार ये हैं---तत, वितत, धन और झुषिर / कोई देव चार प्रकार के गेय गाते हैं / वे चार गेय ये हैं--उत्क्षिप्त, प्रवृत्त, मंद और रोचिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org