________________ 410] [जीवानीवाभिगमसूत्र 8. चन्द्रावरणप्रविभक्ति सूर्यावरणप्रविभक्ति अभिनय रूप / 9. चन्द्रास्तमयनविभक्ति सूर्यास्तमयनप्रविभक्ति अभिनय / 10. चन्द्रमण्डलप्रविभक्ति सूर्यमण्डलप्रविभक्ति यावत् भूतमण्डलप्रविभक्तिरूप अभिनय / 11. ऋषभमण्डलप्रविभक्ति सिंहमण्डलप्रविभक्ति यावत् मत्तगजविलम्बित अभिनय रूप द्रुतविलम्बित नाट्य विधि। 12. सागरप्रविभक्ति नागप्रविभक्ति अभिनय रूप / 13. नन्दाप्रविभक्ति चम्पाप्रविभक्ति रूप अभिनय / 14. मत्स्याण्डकप्रविभक्ति यावत् जारमारप्रविभक्ति रूप अभिनय / 15. ककारप्रविभक्ति यावत् डकारप्रविभक्ति रूप अभिनय / 16. चकारप्रविभक्ति यावत त्रकारप्रविभक्ति रूप अभिनय / 17. टकारप्रविभक्ति यावत णकारप्रविभक्ति / 18. तकारप्रविभक्ति यावत् नकारप्रविभक्ति / 19. पकारप्रविभक्ति यावत् मकारप्रविभक्ति / 20. अशोकपल्लवप्रविभक्ति यावत् कोशाम्बपल्लवप्रविभक्ति / 21. पद्मलताप्रविभक्ति यावत् श्यामलताप्रविभक्तिरूप अभिनय / 22. द्रुत नामक नाट्यविधि / 23. विलम्बित नामक नाट्यविधि / 24. द्रुतविलम्बित नामक नाट्यविधि / 25. अंचित नामक नाट्यविधि / 26. रिभित नामक नाट्यविधि / 27. अंचित रिभित नामक नाट्यविधि / 28. प्रारभट नामक नाट्यविधि / 29. भसोल नामक नाट्यविधि / 30. प्रारभट-भसोल नामक नाट्य विधि / 31. उत्पातनिपातप्रसक्त संकुचितप्रसारित रेकरचित (रियारिय) भ्रान्त-सम्भ्रान्त नामक नाट्यविधि / 32. चरमचरमनामानिबद्धनामा-भगवान् वर्धमान स्वामी का चरम पूर्व मनुष्यभव, चरम देवलोक भव, चरम च्यवन, चरम गर्भसंहरण, चरम तीर्थकर जन्माभिषेक, चरम बालभाव, चरम यौवन, चरम निष्क्रमण, चरम तपश्चरण, चरम ज्ञानोत्पाद, चरम तीर्थप्रवर्तन, चरम परिनिर्वाण को बताने वाला अभिनय / / उक्त बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों में से कुछ का ही उल्लेख इस सूत्र में किया गया है / वाय चार प्रकार के हैं-(१) तत---मृदंग, पटह आदि / (2) वितत वीणा आदि। (3) घन-कंसिका आदि / (4) शुषिर-बांसुरी (काहला) आदि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org