________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र हैं।' ऐसा कहकर वन्दन करता है, नमस्कार करता है / वन्दन-नमस्कार करके जहाँ सिद्धायतन का मध्यभाग है वहाँ पाता है और दिव्य जल की धारा से उसका सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चन्दन से हाथों को लिप्तकर पांचों अंगुलियों से एक मंडल बनता है, उसकी अर्चना करता है और कचग्राह ग्रहीत और करतल से विमुक्त होकर बिखरे हुए पांच वर्षों के फूलों से उसको पुष्पोपचारयुक्त करता है और धूप देता है। धूप देकर जिधर सिद्धायतन का दक्षिण दिशा का द्वार है उधर जाता है / वहां जाकर लोमहस्तक लेकर द्वार शाखा, शालभंजिका तथा व्यालरूपक का प्रमार्जन करता है, उसके मध्यभाग को सरस गोशीर्ष चन्दन से लिप्त हाथों से लेप लगाता है, अर्चना करता है, फूल चढ़ाता है, यावत् प्राभरण चढ़ाता है, ऊपर से लेकर जमीन तक लटकती बड़ी बड़ी मालाएँ रखता है और कचग्राह ग्रहीत और करतल विप्रमुक्त फूलों से पुष्पोपचार करता है, धूप देता है और जिधर मुखमण्डप का बहुमध्यभाग है वहां जाकर लोमहस्तक से प्रमार्जन करता है, दिव्य उदकधारा से सिंचन करता है, सरस गोशीर्ष चन्दन से लिप्त पंचागुलितल से मण्डल का आलेखन करता है, अर्चना करता है, कचग्राहग्रहीत और करतलविमुक्त होकर बिखरे हुए पांचों वर्गों के फूलों का ढेर लगाता है, धूप देता है और जिधर मुखमण्डप का पश्चिम दिशा का द्वार है, उधर जाता है। 142. [3] उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गेण्हइ, मेण्हित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्लेइ, अग्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणणं जाव चच्चए दलयह, दलइत्ता आसतोसत्त० कयग्गाह० धूवं इलयइ, धूवं वलइत्ता जेणेव मुहमंडवगस्स उत्तरिल्लाणं खंभपंती तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, सालभंजियाओ दिव्वाए उदगधाराए. सरसेणं गोसीसचंदणेणं पुप्फाहणं जाव आसत्तोसत्त० कयग्गाह० धूवं दलयइ, जेणेव मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाव दारस्स अच्चणिया। जेणेव दाहिणिल्ले वारे तं चेव पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाइए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गिण्हइ, गिहिता अक्खाडगं य सोहासणं य लोमहत्थगेण पमज्जइ, पमज्जित्ता विश्वाए उदगधाराए अम्भुक्खेइ० पुप्फारहणं जाव घवं दलयइ / जेणेव पेच्छाधरमण्डवस्स पच्चस्थिमिल्ले दारे वारच्चणिया उत्तरिल्ला खंभपंती तहेव पुरस्थिमिल्ले दारे तहेव जेणेव वाहिणिल्ले वारे तहेव जेणेव चेइयथूभे तेणेव उवागच्छा, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं गेण्हइ, गेण्हित्ता चेहयथभं लोमहत्येणं पमज्जइ, दिव्याए वगधाराए० सरसेणं० पुष्फारहणं आसत्तोसत्त० जाव धूवं दलयइ, दलयित्ता जेणेव पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव जिणपडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ, करिता लोमहत्थं गेण्हइ, गेण्हित्ता तं चेव सव्वं जं जिगपडिमाणं जाव सिद्धगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं वंदति णमंसह / एवं उत्तरिल्लाए वि, एवं पुरथिमिल्लाए वि, एवं वाहिणिल्लाए वि / जेणेव चेयरुक्खा बारविही य मणिपेढिया जेणेव महिंदज्झए दारविही, जेणेव दाहिणिल्ला नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छद, लोमहत्थगं गेण्हइ, चेइयाओ य तिसोवाणपडिरूवए य तोरणे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेण पमज्जद्द, दिग्वाए दगवाराए सिंचइ सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपइ, पुप्फारहणं जाव धूवं इलयइ, दलइत्ता सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणं करेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छद, तहेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org