________________ 406] [जीवाजीवामिगमसूत्र जाव अट्ठसहस्साणं भोमेज्जाणं कलसाणं सम्वोदएहि सम्धमट्टियाहिं सव्वसवरेहि सध्यपुप्फेहि जाव सदोसहिसिद्धत्थएहि सब्बिड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सध्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्यविमूईए सम्वविभूसाए सव्यसंभमेणं (सब्बारोहेणं सव्वणाडएहिं )' सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविमूसाए सम्वदिव्वतुडियणिणाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया तुरियममगसमगपड़प्पवाइतरवेणं संख-पणव-पडह-मेरि-मल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरज-मुयंग-दुदुहि निग्धोससन्निनाइयरवेणं महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति / [141](4) तदनन्तर चार हजार सामानिक देव, सपरिवार चार अग्रमहिषियाँ, तीन पर्षदायों के (यथाक्रम पाठ हजार, दश हजार और बारह हजार) देव, सात अनीक, सात अनीकाधिपति, सोलह हजार प्रात्मरक्षक देव और अन्य बहुत से विजया राजधानी के निवासी देव-देवियां उन स्वाभाविक और उत्तरवैक्रिय से निर्मित श्रेष्ठ कमल के आधार वाले, सुगन्धित श्रेष्ठ जल से भरे हुए, चन्दन से चर्चित, गलों में मौलि बंधे हुए, पद्मकमल के ढक्कन वाले, सुकुमार और मृदु करतलों में परिगृहीत एक हजार पाठ सोने के, एक हजार पाठ चाँदी के यावत् एक हजार आठ मिट्टी के कलशों के सर्वजल से, सर्व मिट्टी से, सर्व ऋतु के श्रेष्ठ सर्व पुष्पों से यावत् सर्वौषधि और सरसों से सम्पूर्ण परिवारादि ऋद्धि के साथ, सम्पूर्ण द्युति के साथ, सम्पूर्ण हस्ती आदि सेना के साथ, सम्पूर्ण आभियोग्य समुदय (परिवार) के साथ, समस्त प्रादर से, समस्त विभूति से, समस्त विभूषा से, समस्त संभ्रम (उत्साह) से (सर्वारोहण सर्वस्वरसामग्री से सर्व नाटकों से) समस्त पुष्प-गंध-माल्यअलंकार रूप विभूषा से, सर्व दिव्य वाद्यों की ध्वनि से, महती (बहुत बड़ी) ऋद्धि, महती द्युति, महान् बल (सैन्य) महान् समुदय (आभियोग्य परिवार), महान् एक साथ पटु पुरुषों से बजाये गये वाद्यों के शब्द से, शंख, पणव (ढोल), नगाड़ा, भेरी, झल्लरी, खरमुही (काहला), हुडुक्क (बड़ा मृदंग), मुरज, मृदंग एवं दुंदुभि के निनाद और गूज के साथ उस विजयदेव को बहुत उल्लास के साथ इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त करते हैं। 141. [5] तए णं तस्स विजयदेवस्स महया महया इंदाभिसेगंसि वट्टमाणसि अप्पेगइया देवा गच्चोदगं णातिमट्टियं पविरलफुसियं दिग्वं सुरभि रयरेणुविणासणं गंधोवगवासं वासंति / अप्पेगइया देवा णिहतरयं णटुरयं भट्टरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि सभितरबाहिरियं आसित्तसम्मज्जितोवलितं सित्तसुइसम्मटुरत्यंतरावणवीहियं करेंति / अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचलियं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि गाणाविहरागरंजियकसिय जयविजयवेजयन्तीपडागाइपडागमंडियं करेंति / अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिलाउल्लोइयमहियं करेंति / अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि मोसीससरसरत्तचंदणवदरविण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडितुवारदेसभागं करेंति / अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि आसत्तोसत्तविपुलवट्टवग्धारियसल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं 1. 'सव्वारोहेण सणाडएहि' पाठ वृत्ति में नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .