________________ 402] [जीवाजीवाभिगमसूत्र देवानुप्रिय के लिए पूर्व में भी श्रेयस्कर है, पश्चात् भी श्रेयस्कर है; यह प्राप देवानुप्रिय के लिए पूर्व में भी करणीय है और पश्चात् भी करणीय है; यह आप देवानुप्रिय के लिए पहले और बाद में हितकारी यावत् साथ में चलने वाला होगा, ऐसा कहकर वे जोर-जोर से जय-जयकार शब्द का प्रयोग करते हैं। 141. [2] तए णं से विजए देवे तेसि सामाणियपरिसोपवण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म हटतुटु जाव हियए देवसयणिज्जाओ अम्भुलैंड, अम्भुद्धिता दिव्वं देवदूसजुयलं परिहेइ, परिहेइत्ता देवसयणिज्नाओ पच्चोरुहह, पच्चोरुहिता उववायसमाओ पुरथिमेण दारेण णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणं करेमाणे करेमाणे पुरस्थिमेणं तोरणेणं अणुप्पविसइ, अणुप्यविसित्ता पुरस्थिमेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हरयं ओगाहइ, ओगाहिता जलावगाहणं करेइ, करिता जलमज्जणं करेइ, फरेत्ता जलकिड्ड करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए हरमाओ पच्चुत्तरइ पच्चुत्तरित्ता जेणामेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अमिसेयसमं पदाहिणं करेमाणे पुरस्थिमिल्लेणं बारेण अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सए सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरच्छाभिमुहे सण्णिसण्णे। [141] (2) उन सामानिक पर्षदा के देवों से ऐसा सुनकर वह विजयदेव हृष्ट-तुष्ट हुआ यावत् उसका हृदय विकसित हुआ / वह देवशयनीय से उठता है और उठकर देवदूष्य युगल धारण करता है, धारण करके देवशयनीय से नीचे उतरता है, उतर कर उपपातसभा से पूर्व के द्वार से बाहर निकलता है और जिधर ह्रद (सरोवर) है उधर जाता है, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्व दिशा के तोरण से उसमें प्रवेश करता है और पूर्व दिशा के त्रिसोपानप्रतिरूपक से नीचे उतरता है और जल में अवगाहन करता है / जलावगाहन करके जलमज्जन (जल में डुबकी लगाना) और जलक्रीडा करता है। इस प्रकार अत्यन्त पवित्र और शुचिभूत होकर हद से बाहर निकलता है और जिधर अभिषेकसभा है उधर जाता है। अभिषेकसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्व दिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है और जिस ओर सिंहासन रखा है उधर जाता है और पूर्वदिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर बैठ जाता है / 141. [3] तए णं तस्स विजयदेवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिओगिए देवे सहावेंति सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विजयस्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विपुलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेह / तए णं ते आभिनोगिया देवा सामाणियपरिसोक्वण्णगेहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ट तुटू जाय हियया करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं देवा! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुगंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं विसिमागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्धियसमुग्घाएणं समोहणंति समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं णिस्सरंति, तहाविहे रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाउंति परिसाडित्ता अहासुहमे पोग्गले परियायंति परियाइत्ता दोच्चंपि वेटिवयसमुग्धाएणं समोहणंति समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोणियाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पामयाणं कलसाणं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org